The Book of the Secrets of Enoch - Hindi

Hindi translation of Slavonic Enoch by W. R. Morfill, M.A.

One thing this book of the secrets of Enoch prove is that God is corporeal. He has a form. Enoch went to see the Lord and describes his terrible face. Enoch mentions that in 22.2 (Thus I saw the Lord's face, but the Lord’s face is ineffable, marvellous and very awful, and very, very terrible)

Lord seen by Enoch

As one reads through the book, it becomes clear that the Lord that Enoch went to see is not formless.

The english version of the book of the secrets of Enoch can be read at this link.

हनोक के रहस्यों की पुस्तक

अध्याय 1, I

1 एक बुद्धिमान मनुष्य था, बड़े काम करने वाला मनुष्य था, और प्रभु ने उसके प्रति प्रेम की कल्पना की, और उसे ग्रहण किया, कि वह ऊपर के निवासों को देखे, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बुद्धिमान और महान और अकल्पनीय और अपरिवर्तनीय क्षेत्र का चश्मदीद गवाह बने। भगवान के सेवकोंका बहुत ही अद्भुत और शानदार और उज्ज्वल और कई आंखों वाला स्थान, और भगवान के दुर्गम सिंहासन, और निराकार यजमानों की डिग्री और अभिव्यक्तियाँ, और तत्वों की भीड़ का अवर्णनीय मंत्रालय , और चेरुबिम के मेजबान की विभिन्न स्पष्टताओं और अवर्णनीय गायनऔर असीम प्रकाश की।

2 उस समय उस ने कहा, जब मेरा एक सौ पैंसठवां वर्ष पूरा हुआ, तब मेरे पुत्र मथुसल (मथुशेलह) उत्पन्न हुआ ।

3 इसके बाद मैं दो सौ वर्ष जीवित रहा, और अपनी आयु के सब वर्षों में से तीन सौ पैंसठ वर्ष पूरे किए।

4 महीने के पहिले दिन को मैं अपने घर में अकेला था, और अपने बिछौने पर विश्राम करके सो गया।

5 और जब मैं सो गया, तो मेरे हृदय में बड़ा क्लेश उत्पन्न हुआ, और मैं नींद में अपनी आंखों से रो रहा था, और मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या संकट है, या मेरा क्या होगा।

6 और मुझे दो मनुष्य दिखाई दिए, जो बहुत बड़े थे, यहां तक कि मैंने पृय्वी पर कभी नहीं देखा; उनके चेहरे सूर्य के समान चमक रहे थे, उनकी आंखें भी जलती हुई रोशनी की तरह थीं, और उनके होठों से आग निकल रही थी, उनके कपड़े और बैंगनी रंग के विभिन्न प्रकार के गाने, उनके पंख सोने से भी ज्यादा चमकीले थे, उनके हाथ सफेद थे बर्फ की तुलना में.

7 वे मेरे पलंग के सिरहाने खड़े होकर मेरा नाम ले कर मुझे पुकारने लगे ।

8 और मैं नींद से जाग उठा, और उन दो पुरूषों को अपने साम्हने खड़े हुए भली भांति देखा।

9 और मैंने उनको नमस्कार किया, और मैं भय से घबरा गया, और मेरे चेहरे का भाव भय के मारे बदल गया, और उन पुरूषों ने मुझ से कहा;

10 हे हनोक, हियाव बान्ध, मत डर; अविनाशी भगवान ने हमें आपके पास भेजा है, और देखो! तू आज हमारे साथ स्वर्ग पर चढ़ना , और अपने बेटों और अपने सारे घराने को सब कुछ बताना जो वे तेरे बिना पृय्वी पर तेरे घर में करेंगे, और जब तक भगवान तुझे उनके पास न लौटा दे तब तक कोई तुझे न ढूंढ़े।

11 और मैं ने उनकी बात मानकर फुर्ती की, और अपने घर से निकलकर, जैसा मुझे आदेश दिया गया था, वैसा ही द्वार पर जाकर अपने पुत्रों मथुसल (मथुशेलह) और रेगिम और गैदाद को बुलाया, और उन पुरूषों का सब आश्चर्यकर्म उनको बता दिया जो उन्होने मुझे बताया था ।

अध्याय 2, II

1 हे मेरे बालको, मेरी सुनो, मैं नहीं जानता कि मैं किधर जाता हूं, या मुझ पर क्या बीतेगा; इसलिये अब, मेरे बच्चों, मैं तुमसे कहता हूं: व्यर्थ लोगों के सामने भगवान से मत हटो, जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी नहीं बनाई, क्योंकि ये और जो उनकी पूजा करते हैं वे नष्ट हो जाएंगे, और प्रभु तुम्हारे दिलों को भय से आश्वस्त करउसे। और अब, हे मेरे बच्चों, जब तक प्रभु मुझे तुम्हारे पास लौटा न दे, तब तक कोई मुझे ढूंढ़ने की न सोचे।

अध्याय 3, III

1 जब हनोक ने अपके पुत्रोंको यह समाचार दिया, तब स्वर्गदूतों ने उसे अपके पंखोंपर उठा लिया, और पहिले आकाश पर उठाकर बादलोंपर रख दिया। और मैं ने वहां दृष्टि की, और फिर मैं ने ऊंची दृष्टि की, और आकाश को देखा, और उन्होंने मुझे पहिले स्वर्ग पर रखा, और मुझे एक बहुत बड़ा समुद्र दिखाया, जो पृय्वी के समुद्र से भी बड़ा है।

अध्याय 4, IV

1 और उन्होंने मेरे साम्हने पुरनियों और तारामंडल के हाकिमों को खड़ा किया, और मुझे दो सौ स्वर्गदूत दिखाए जो तारों पर प्रभुता करते हैं और आकाश की सेवा करते हैं, और अपने पंखों से उड़ते हैं और सब जहाज चलाने वालों के पास आते हैं।

अध्याय 5, V

1 और यहां मैं ने नीचे दृष्टि की, और बर्फ के भण्डार, और स्वर्गदूत जो अपने भयानक भण्डार रखते हैं, और बादल भी देखे जिन से वे निकलते और जिनमें जाते हैं।

अध्याय 6, VI

1 उन्होंने मुझे जलपाई के तेल के समान ओस का भण्डार, और पृय्वी के सब फूलों के समान उसका रूप दिखाया; इसके अलावा कई देवदूत इन (वस्तुओं) के खज़ाने की रखवाली करते हैं, और उन्हें कैसे बंद और खोला जाता है।

अध्याय 7, VII

1 और वे मनुष्य मुझे पकड़कर दूसरे स्वर्ग पर ले गए, और मुझे पृय्वी के अन्धकार से भी बड़ा अन्धकार दिखाया, और वहां मैं ने बन्दियों को फाँसी पर लटकते देखा, और महान और असीम न्याय की प्रतीक्षा करते हुए देखा, और ये स्वर्गदूत (आत्माएँ) काले थे, सांसारिक अंधकार से भी अधिक, और लगातार हर घंटे रोना।

2 और मैं ने अपने सायोंसे पूछा, ये क्यों लगातार सताए जाते हैं? उन्होंने मुझे उत्तर दिया: ये भगवान के धर्मत्यागी हैं, जिन्होंने भगवान की आज्ञाओं का पालन नहीं किया, बल्कि अपनी इच्छा से सलाह ली, और अपने राजकुमार के साथ चले गए, जो पांचवें स्वर्ग पर चढ़ा हुआ है ।

3 और मुझे उन पर बड़ी दया आई, और उन्होंने मुझे नमस्कार करके कहा, हे परमेश्वर के जन , हमारे लिये भगवान से प्रार्थना करो ; और मैंने उन्हें उत्तर दिया: मैं कौन हूं, एक नश्वर मनुष्य, जो स्वर्गदूतों (आत्माओं) के लिए प्रार्थना करूं ? कौन जानता है कि मैं किधर जाऊँगा, या मुझ पर क्या बीतेगी? या कौन मेरे लिये प्रार्थना करेगा?

अध्याय 8, VIII

1 और वे पुरूष मुझे वहां से ले गए, और तीसरे स्वर्ग पर ले गए, और वहां रखा; और मैंने नीचे की ओर देखा, और इन स्थानों की उपज देखी, जैसे की पहले कभी नहीं देखी गयी थी।

2 और मैं ने सब सुगन्धित फूलवाले वृझोंको देखा, और उनके फल भी सुगन्धवाले, और जितने भोज्य पदार्थ उनसे उत्पन्न होते थे, सब अत्यंत सुगंधवाले थे।

3 और जीवन के वृक्षोंके बीच में, उस स्यान में जिस पर प्रभु विश्राम करेगा, और स्वर्गलोक पर चढ़ जाएगा ; और यह पेड़ अवर्णनीय अच्छाई और सुगंध वाला है, और हर मौजूदा चीज़ से अधिक सुशोभित है; और वह सब ओर से सोने, सिन्दूरी, अग्नि के समान और सब को ढांपनेवाला है, और सब फलों से उपजा हुआ है।

4 उसकी जड़ पृय्वी की छोर पर बाटिका में है।

5 और स्वर्ग भ्रष्टता और अदूषणीयता के बीच में है।

6 और दो झरने निकलते हैं, जिन से मधु और दूध निकलता है, और उनके झरनो से तेल और दाखमधु (wine) निकलता है, और वे चार भागों में अलग हो जाते हैं, और शान्त मार्ग से बहते हैं, और अदन के स्वर्ग (paradise of eden) में भ्रष्टता और अदूषणीयता के बीच उतरते हैं।

7 और वहां से वे पृथ्वी के साथ-साथ आगे बढ़ते हैं, और अन्य तत्वों की तरह अपने घेरे में एक चक्कर लगाते हैं।

8 और यहां कोई निष्फल वृक्ष नहीं है, और हर एक स्थान धन्य है। ।

9 और (वहां) तीन सौ अत्यंत तेजस्वी स्वर्गदूत हैं , जो बाटिका की रखवाली करते हैं, और लगातार मधुर गायन और कभी न शांत होने वाली आवाज के साथ सभी दिनों और घंटों में प्रभु की सेवा करते हैं।

10 और मैं ने कहा, यह स्थान कितना प्यारा है, और उन पुरूषोंने मुझ से कहा,

अध्याय 9, IX

1 हे हनोक, यह स्थान धर्मियों के लिये तैयार किया गया है, जो अपने प्राणों को रिसनेवालों का सब प्रकार का अपराध सहते हैं, जो अधर्म से अपनी आँखें फेर लेते हैं, और धर्म से न्याय करते हैं, भूखों को रोटी देते हैं, और नंगे को वस्त्र से ढांप देते हैं, और गिरे हुए को उठाना, और घायल अनाथों की सहायता करना, और जो निर्दोष होकर प्रभु के सामने चलते हैं, और सिर्फ उसी की सेवा करते हैं, यह स्थान उनके लिये अनन्त मीरास के लिये तैयार किया गया है।

अध्याय 10, X

1 और वे दोनों मनुष्य मुझे उत्तर की ओर ले गए, और वहां मुझे एक बहुत ही भयानक स्थान दिखाया, और (वहां) उस स्थान में सभी प्रकार की यातनाएं थीं: क्रूर अंधकार और अप्रकाशित अंधेरा, और वहां कोई रोशनी नहीं थी, लेकिन धुंधली आग लगातार ऊपर की ओर धधक रही है, और (वहां) एक उग्र नदी निकल रही है, और उस पूरे स्थान पर हर जगह आग है, और हर जगह (वहां) ठंढ और बर्फ, प्यास और कंपकंपी है, जबकि बंधन बहुत क्रूर हैं, और स्वर्गदूत (spirits) भयभीत और निर्दयी, क्रोधपूर्ण हथियार, निर्दयी यातना धारण किये हुए हैं, और मैंने कहा:

2 हाय, हाय, यह स्थान कितना भयानक है।

3 और उन मनुष्यों ने मुझ से कहा, हे हनोक , यह स्थान उन लोगों के लिये तैयार किया गया है जो परमेश्वर का अनादर करते हैं , और पृथ्वी पर प्रकृति के विरूद्ध पाप करते हैं, जो कि लौंडेबाज़ी बाल-भ्रष्टाचार, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र और शैतानी जादू-टोने, अपने दुष्ट कर्मों पर घमंड करते हैं, चोरी, झूठ, निन्दा, ईर्ष्या, विद्वेष, व्यभिचार, हत्या करते हैं, और जो शापित होकर मनुष्यों की आत्माएँ चुरा लेते हैं, जो गरीबों को देखकर उनका माल छीन लेते हैं और स्वयं अमीर बन जाते हैं, दूसरों के लिए उन्हें चोट पहुँचाते हैं पुरुषों का सामान; जो खाली पेट को तृप्त कर सकता था, उस ने भूखे को मरने योग्य बना दिया; किसी को कपडे देने में सक्षम होने के बावजूद उनको नग्न कर देना; और जो अपने रचयिता को नहीं जानते थे, और निष्प्राण (और निर्जीव) देवताओं को दण्डवत् करते थे जो देख और सुन नहीं सकते, व्यर्थ देवताओं, (जिन्होंने) खुदी हुई मूरतें बनाईं और अशुद्ध हस्तकला के आगे दण्डवत् किया, इन्हीं सब के लिए यह स्थान तैयार किया गया है , अनन्त मीरास के लिए.

अध्याय 11, XI

1 उन पुरूषों ने मुझे पकड़ लिया, और चौथे स्वर्ग पर ले गए, और मुझे सब क्रमिक मार्ग, और सूर्य और चन्द्रमा की सारी किरणें दिखाईं।

2 और मैं ने उनकी गति मापी, और उनकी रोशनी का मिलान किया, और क्या देखा कि सूर्य की रोशनी चन्द्रमा की रोशनी से भी अधिक है।

3 उसका घेरा और पहिये जिन पर वह सदा चलता रहता है, जैसे वायु अति अद्भुत वेग से चलती है, और दिन रात उसे विश्राम नहीं मिलता।

4 इसके गुजरने और लौटने के साथ-साथ चार बड़े तारे हैं, (और) प्रत्येक तारे के नीचे एक हजार तारे हैं, सूर्य के पहिये के दाहिनी ओर, (और) बायीं ओर चार, प्रत्येक तारे के नीचे एक हजार तारे हैं, कुल मिलाकर आठ हजार, लगातार सूर्य के साथ जारी।

5 और दिन को पन्द्रह स्वर्गदूत उस में उपस्थित होते हैं, और रात को एक हजार।

6 और छ: पंखवाले सूर्य के पहिये के आगे आगे स्वर्गदूतों के संग आग की लपटों में चले गए, और सौ स्वर्गदूतों ने सूर्य को जलाकर भस्म कर दिया।

अध्याय 12, XII

1 और मैं ने दृष्टि की, और सूर्य के और भी उड़नेवाले तत्त्वोंको देखा, जिनके नाम फीनिक्स (Phoenixes) और चल्क्यद्रि (Chalkydri) हैं, जो कमाल और अद्भुत हैं, जिनके पांव और पूँछें सिंह की सी और सिर मगरमच्छ का सा है, और उनका रूप बैंगनी; इंद्रधनुष के समान है। उनका आकार नौ सौ माप है, उनके पंख स्वर्गदूतों के समान हैं , प्रत्येक में बारह हैं, और वे गर्मी और ओस सहन करते हुए सूर्य के साथ उपस्थित होते हैं, जैसा कि भगवान ने उन्हें आदेश दिया है ।

2 इस प्रकार (सूर्य) घूमता रहता है, और स्वर्ग के नीचे से उगता है, और निरंतर अपनी किरणों के प्रकाश के साथ उसका मार्ग पृथ्वी के नीचे से हो कर गुज़रता है।

अध्याय 13, XIII

1 उन पुरूषों ने मुझे पूर्व की ओर ले जाकर सूर्य के फाटकों के पास रख दिया, जहां सूर्य ऋतुओंके नियम के अनुसार, और वर्ष भर के महीनोंकी गिनती के अनुसार, और दिन और रात के घण्टोंकी गिनती के अनुसार निकलता है।

2 और मैं ने छ: फाटक खुले हुए देखे, और हर फाटक में एकसठ स्टेडियम और एक चौथाई स्टेडियम थे, और मैं ने उन्हें सचमुच नापा, और समझ गया कि उनका आकार इतना है, जिस में से होकर सूर्य निकलता है, और निकलता है पश्चिम की ओर, और समतल किया जाता है, और सभी महीनों में उगता है, और ऋतुओं के क्रम के अनुसार छह द्वारों से वापस लौट जाता है; इस प्रकार चारों ऋतुओं की वापसी के बाद पूरे वर्ष की (अवधि) समाप्त हो जाती है।

अध्याय 14, XIV

1 और फिर वे मनुष्य मुझे पश्‍चिमी भाग में ले गए, और मुझे छ: बड़े खुले हुए फाटक दिखाए, जो पूर्वी द्वारों के अनुरूप थे, जहाँ सूर्य तीन सौ पैंसठ और एक चौथाई दिनों तीन सौ पैंसठ और एक चौथाई दिनों के उपरांत अस्त होता है।

2 इस प्रकार वह फिर पश्‍चिमी फाटकों तक उतरता है, और अपना प्रकाश अर्यात्‌ अपके तेज को पृय्वी के नीचे खींच ले जाता है; क्योंकि उसकी चमक का मुकुट स्वर्ग में प्रभु के पास, और चार सौ स्वर्गदूतों द्वारा संरक्षित है, जबकि सूर्य पृथ्वी के नीचे पहिये पर घूमता है, और रात में सात महान घंटे खड़ा रहता है, और पृथ्वी के नीचे आधा (रास्ता) बिताता है , जब यह रात के आठवें घंटे में पूर्वी दृष्टिकोण की ओर आता है, तो यह अपनी रोशनी, और चमक का मुकुट लाता है, और सूरज आग से भी अधिक चमकता है।

अध्याय 15, XV

1 तब सूर्य के तत्व, जिन्हें फीनिक्स और चाल्कीड्री कहा जाता है, गाने लगते हैं, इस कारण हर पक्षी अपने पंखों को फड़फड़ाता है, प्रकाश देने वाले के कारण आनन्दित होता है, और वे प्रभु के आदेश पर गाने लगते हैं ।

2 प्रकाश देनेवाला सारे जगत को उजियाला देने को आता है, और भोर का पहरा, जो सूर्य की किरणें है, आकार लेता है, और पृय्वी का सूर्य बुझ जाता है, और अपना तेज पाकर सारे जगत को प्रकाशित कर देता है। और उन्होंने मुझे सूर्य के अस्त होने की यह गणना दिखाई।

3 और जिन फाटकों से वह प्रवेश करता है, वे वर्ष के घण्टोंके हिसाब से बड़े फाटक हैं; इस कारण से सूर्य एक महान रचना है, जिसका परिभ्रमण अट्ठाईस वर्षों तक चलता है, और आरंभ से फिर प्रारंभ होता है।

अध्याय 16, XVI

1 उन पुरूषों ने मुझे दूसरा मार्ग, अर्थात चंद्रमा का मार्ग, बारह बड़े द्वार दिखाए, जो पश्चिम से पूर्व की ओर बने हुए थे, जिन से होकर चंद्रमा रीति के समय अनुसार भीतर और बाहर आता जाता है।

2 यह पहले द्वार से सूर्य के पश्चिमी स्थानों में प्रवेश करता है, पहले द्वार से ठीक (तीस) -एक (दिन) में, दूसरे द्वार से ठीक इकतीस दिन में, तीसरे द्वार से ठीक तीस दिन में प्रवेश करता है। चौथे द्वारा बिल्कुल तीस दिन, पांचवें द्वारा बिल्कुल इकतीस दिन, छठे द्वारा बिल्कुल इकतीस दिन, सातवें द्वारा बिल्कुल तीस दिन, आठवें द्वारा बिल्कुल इकतीस दिन, नौवें द्वारा बिल्कुल ठीक तीस दिन ठीक इकतीस दिन, दसवें तक ठीक तीस दिन, ग्यारहवें तक ठीक इकतीस दिन, बारहवें तक ठीक अट्ठाईस दिन।

3 और यह पूर्वी के क्रम और संख्या में पश्चिमी द्वारों से होकर गुजरता है, और सौर वर्ष के तीन सौ पैंसठ दिन पूरे करता है, जबकि चंद्र वर्ष में तीन सौ चौवन दिन होते हैं, और इसमें कमी होती है (इसके लिए) सौर मंडल के बारह दिन, जो पूरे वर्ष का चंद्र प्रभाव हैं।

4 इस प्रकार, बड़े चक्र में भी पाँच सौ बत्तीस वर्ष हैं।

5 तीन वर्ष तक एक चौथाई (एक दिन का) छोड़ दिया जाता है, चौथा उसे ठीक-ठीक पूरा करता है।

6 इस कारण वे तीन वर्ष के लिये स्वर्ग से बाहर निकाले जाते हैं, और दिनों की गिनती में नहीं जोड़े जाते, क्योंकि वे वर्षों का समय पूरा करके दो नए महीने कर देते हैं, और घट कर दो नए महीने कर देते हैं।

7 और जब पश्‍चिमी फाटक पूरे हो जाते हैं, तब वह लौटकर पूर्व की ओर ज्योतियों की ओर चला जाता है, और इस प्रकार दिन रात स्वर्गीय मंडलों के चारों ओर घूमता रहता है, सब मंडलों से नीचे, स्वर्गीय हवाओं से भी तेज़, और उड़ने वाली आत्माओं और तत्वों और स्वर्गदूतों से; प्रत्येक देवदूत के छह पंख हैं।

8 उन्नीस वर्षों में इसका सात गुना पाठ्यक्रम है।

अध्याय 17, XVII

1 आकाश के बीच में मैंने हथियारबंद सिपाहियों को, जो तन और अंगों से, निरंतर स्वर से, मधुर स्वर से, मधुर और निरंतर (आवाज) और विभिन्न गायन के साथ, जिसका वर्णन करना असंभव है, भगवान की सेवा करते हुए देखा , और (जिसका) ) हर मन को चकित कर देता है, उन स्वर्गदूतों का गायन इतना अद्भुत और अद्भुत है, और मैं इसे सुनकर प्रसन्न हुआ।

अध्याय 18, XVIII

1 वे लोग मुझे पांचवें स्वर्ग पर ले गए, और वहां मुझे रखा, और वहां मैंने बहुत से और अनगिनत सैनिकों को देखा, जो ग्रिगोरी (Grigori) कहलाते थे, और मनुष्य के समान दिखते थे, और उनका आकार बड़े-बड़े दानवों से भी बड़ा था , और उनके चेहरे मुरझाए हुए थे, और उनके मुंह पर सदा के लिए सन्नाटा था।, और पांचवें स्वर्ग पर उनकी कोई सेवा नहीं थी, और मैंने उन लोगों से कहा जो मेरे साथ थे:

2 वे क्यों मुरझाए हुए हैं, और उनके मुख उदास हैं, और उनके मुंह शान्त हैं, और क्या इस स्वर्ग पर कोई सेवा नहीं होती?

3 और उन्होंने मुझ से कहा, ये वही ग्रिगोरी हैं, जिन ने अपके हाकिम सतानेल (शैतान) समेत ज्योति के प्रभु (Lord of Light) का तिरस्कार किया , और उनके पीछे वे लोग हैं जो दूसरे स्वर्ग पर बड़े अन्धकार में पड़े हुए हैं, और उन में से तीन प्रभु के सिंहासन से पृथ्वी पर नीचे उतर गए, एरमोन स्थान पर, और एरमोन पहाड़ी के कंधे पर अपनी मन्नतें तोड़ दीं और पुरुषों की बेटियों को देखा कि वे कितनी अच्छी हैं, और उन्होंने पत्नियाँ ले लीं, और अपने कामों से पृथ्वी को गंदा कर दिया, जिन्होंने अपने युग के हर समय में अधर्म और मिश्रण किया, और दिग्गज पैदा हुए हैं और अद्भुत बड़े लोग और बड़ी दुश्मनी हुई है।

4 और इसलिथे परमेश्वर ने बड़े दण्ड से उनका न्याय किया, और वे अपके भाइयोंके लिथे विलाप करते हैं, और भगवान के बड़े दिन में उनको दण्ड दिया जाएगा।

5 और मैंने ग्रिगोरी से कहा, मैंने तुम्हारे भाइयों और उनके कामों को, और उनकी बड़ी यातनाओं को देखा, और मैंने उनके लिये प्रार्थना की, परन्तु भगवान ने उन्हें पृथ्वी के नीचे तब तक रहने के लिये दोषी ठहराया है जब तक कि (मौजूदा) स्वर्ग और पृथ्वी समाप्त न हो जाएं।

6 और मैंने कहा, हे भाइयो, तुम क्यों बाट जोहते हो, और भगवान के साम्हने सेवा नहीं करते, और अपक्की सेवा भगवान के साम्हने नहीं करते, ऐसा न हो कि तुम अपके प्रभु को अत्यन्त क्रोधित करो?

7 और उन्होंने मेरी चितौनी सुनी, और स्वर्ग के चारों पंगों से कहा, और देखो! जैसे ही मैं उन दो आदमियों के साथ खड़ा हुआ, चार तुरहियाँ एक साथ बड़े स्वर में बजाई गईं, और ग्रिगोरी ने एक स्वर में गाना शुरू कर दिया, और उनकी आवाज़ प्रभु के सामने दयनीय और प्रभावशाली ढंग से उठी।

अध्याय 19, XIX

1 और वहां से वे मनुष्य मुझे उठाकर छठे स्वर्ग पर ले गए, और वहां मैं ने स्वर्गदूतों के सात दल देखे, जो बहुत ही उज्ज्वल और बहुत ही महिमामय थे, और उनके चेहरे सूर्य की चमक से भी अधिक चमक रहे थे, चमकदार, और उनके चेहरों, या व्यवहार, या पहनावे के ढंग में कोई अंतर नहीं था; और ये आदेश देते हैं, और तारों की चाल,और चंद्रमा के परिवर्तन, या सूर्य की क्रांति, और विश्व का सुशासन देखते हैं।

2 और जब वे बुरा काम देखते हैं, तो आज्ञाएं और शिक्षा देते हैं, और मधुर और ऊंचे स्वर से गाते हैं, और स्तुति के सब गीत गाते हैं।

3 ये प्रधान स्वर्गदूत हैं जो स्वर्गदूतों से ऊपर हैं, स्वर्ग और पृथ्वी पर सारे जीवन को मापते हैं, और वे स्वर्गदूत जो ऋतुओं और वर्षों के ऊपर (नियुक्त) हैं, वे स्वर्गदूत जो नदियों और समुद्र के ऊपर हैं, और जो पृथ्वी की उपज के ऊपर हैं। , और स्वर्गदूत जो हर घास के ऊपर हैं, सभी को भोजन देते हैं, हर जीवित प्राणी को, और स्वर्गदूत जो मनुष्यों की सभी आत्माओं, और उनके सभी कार्यों, और उनके जीवन को प्रभु के सामने लिखते हैं; उनके बीच में छः फीनिक्स (Phoenixes) और छः करूब (Cherubim) और छः छः पंखवाले हैं, जो एक ही स्वर से लगातार गाते रहते हैं, और उनके गायन का वर्णन करना संभव नहीं है, और वे भगवान के चरणों के नीचे उसके साम्हने आनन्द करते हैं।

अध्याय 20, XX

1 और उन दो आदमियों ने मुझे वहां से सातवें आसमान पर उठा लिया, और मैंने वहां देखा, एक बहुत बड़ी रोशनी, और महान महादूतों की उग्र सेना, मैंने निराकार सेनाएँ, और प्रभुत्व, आदेश और सरकारें, चेरुबिम और सेराफिम, सिंहासन और कई आँखों वाले, नौ रेजिमेंट, प्रकाश के आयोनिट स्टेशन देखे, और मैं डर गया, और बड़े आतंक से कांपने लगा, और उन लोगों ने मुझे पकड़ लिया, और मुझे अपने पीछे ले गए, और मुझसे कहा:

2 हे हनोक, हियाव बान्ध, मत डर; और भगवान को दूर से अपने ऊंचे सिंहासन पर बैठा हुआ दिखाया। दसवें स्वर्ग पर क्या है, क्योंकि भगवान वहीं रहता है?

3 दसवें स्वर्ग पर परमेश्वर है, इब्रानी (hebrew) भाषा में उसे अरावत (Aravat) कहा जाता है।

4 और सब स्वर्गीय दल, भगवान की महिमापूर्वक सेवा करते हुए, आकर अपने अपने पद के अनुसार दस सीढ़ियों पर खड़े होते, और भगवान को दण्डवत् करते, और छोटे और कोमल स्वरों से अनन्त प्रकाश में गीत गाते हुए आनन्द और आनन्द के साथ फिर अपने अपने स्थानों को चले जाते।

अध्याय 21, XXI

1 और करूब और सेराफिम सिंहासन के चारों ओर खड़े हैं, और छः पंखवाले और बहु-आंखोंवाले अलग नहीं होते, भगवान के साम्हने खड़े होकर उसकी इच्छा पूरी करते हैं, और उसके सारे सिंहासन को ढांप देते हैं, और प्रभु के चेहरे के साम्हने कोमल स्वर से गाते हैं: पवित्र, पवित्र, पवित्र, सबाओथ (Sabaoth = Lord of Hosts - परमेश्वर की शक्ति और सामर्थ्य को दर्शाता है) के शासक, स्वर्ग और पृथ्वी आपकी महिमा से भरे हुए हैं।

2 जब मैं ने ये सब बातें देखीं, तब उन पुरूषोंने मुझ से कहा, हे हनोक, हमें तेरे साथ यहां तक चलने की आज्ञा दी गई है, और वे पुरूष मेरे पास से चले गए, और तब मैंने उनको न देखा।

3 और मैं सातवें आसमान की छोर पर अकेला रह गया, और डर गया, और मुंह के बल गिरकर मन में कहने लगा, धिक्कार है मुझ पर, मुझ पर क्या बीती है?

4 और प्रभु ने अपने महिमामय लोगों में से एक, प्रधान स्वर्गदूत जिब्राईल (Gabriel) को भेजा , और (उसने) मुझसे कहा: साहस रखो, हनोक, डरो मत, प्रभु के सामने अनंत काल तक उठो, उठो, मेरे साथ आओ।

5 और मैंने उसको उत्तर दिया, और मन ही मन कहा, हे मेरे प्रभु, मेरा प्राण (soul) भय और थरथराहट के कारण मुझ पर से उतर गया है, और जो पुरूष मुझे यहां तक ले आए थे, उन को मैंने पुकारा, उन पर मैं ने भरोसा किया, और (यह है) मैं उनके साथ प्रभु के सम्मुख जाता हूँ।

6 और जिब्राएल ने मुझे पवन से उड़ते हुए पत्ते की नाईं पकड़कर प्रभु के साम्हने खड़ा कर दिया।

7 और मैंने आठवां स्वर्ग देखा, जो इब्रानी भाषा (Hebrew) में मुजालोत (Muzaloth) कहलाता है, और ऋतुओं का, सूखे का, और जल का, और आकाश के वृत्त के बारह नक्षत्रों का, जो सातवें स्वर्ग के ऊपर हैं, बदलता है ।

8 और मैंने नौवां स्वर्ग देखा , जिसे इब्रानी भाषा में कुचाविम (Kuchavim) कहा जाता है, जहां आकाशमण्डल के वृत्त के बारह नक्षत्रों के स्वर्गीय घर हैं।

अध्याय 22, XXII

1 दसवें स्वर्ग पर, {जिसे अरावोथ (Aravoth) कहा जाता है}, मैंने भगवान के मुख का रूप देखा, जैसे मानो लोहे को आग में जलाकर चमकाया जाता है, और बहार निकलते वक़्त वो चिंगारी छोड़ता है और जलता है।

2 इस प्रकार (अनंत काल के एक क्षण में) मैंने प्रभु का चेहरा देखा, लेकिन प्रभु का चेहरा अवर्णनीय, अद्भुत और बहुत भयानक, और बहुत, बहुत भयानक है।

3 और मैं कौन हूं जो प्रभु के अकथनीय अस्तित्व, और उसके अत्यंत अद्भुत मुख के विषय में बताऊं? और मैं उनके कई निर्देशों, और विभिन्न आवाजों की मात्रा नहीं बता सकता, प्रभु का सिंहासन बहुत महान है और हाथों से नहीं बनाया गया है, न ही उनके चारों ओर खड़े लोगों की संख्या, चेरुबिम और सेराफिम की सेना , न ही उनका निरंतर गायन , न ही उसकी अपरिवर्तनीय सुंदरता, और उसकी महिमा की अवर्णनीय महानता के बारे में कौन बताएगा।

4 और मैं ने झुककर भगवान को दण्डवत् किया, और भगवान ने मुंह से मुझ से कहा;

5 हे हनोक, हियाव बान्ध, मत डर, उठ, और अनन्तकाल तक मेरे साम्हने खड़ा रह।

6 और सरदार मीकाएल ने मुझे उठाया, और प्रभु के साम्हने ले गया।

7 और भगवान ने अपके दासोंको परखते हुए उन से कहा, हनोक को मेरे साम्हने सदा तक खड़ा रहने दे, और महिमामय लोगोंने भगवान को दण्डवत् करके कहा, हनोक को आपके वचन के अनुसार चलने दे।

8 और भगवान ने मीकाएल से कहा, जा कर हनोक को उसके पार्थिव वस्त्रों में से निकालो, और उस पर मेरे मधुर लेप का अभिषेक कर, और उसे मेरी महिमा के वस्त्र पहना दो ।

9 और मीकाएल ने वैसा ही किया, जैसा भगवान ने उस से कहा या। उस ने मेरा अभिषेक किया, और मुझे पहिनाया, और उस मरहम लेप का रूप बड़ी रोशनी से भी बढ़कर है, और उसका मरहम मीठी ओस के समान है, और उसकी सुगन्ध हल्की, और सूर्य की किरण के समान चमकती है, और मैंने अपनी ओर देखा, और (मैं) उसके गौरवशाली लोगों में से एक जैसा (परिवर्तित) था ।

10 और प्रभु ने प्रावुइल (Pravuil) नाम अपने एक प्रधान स्वर्गदूत को बुलाया, जिसका ज्ञान अन्य प्रधान स्वर्गदूतों से तेज था, जिसने प्रभु के सभी कार्यों को लिखा था ; और भगवान ने प्रावुइल से कहा, मेरे भण्डारों में से पुस्तकें, और शीघ्र लिखने की एक छड़ी निकाल कर हनोक को दे , और अपने हाथ से उत्तम और सुखदायक पुस्तकें उसे सौंप दे।

अध्याय 23, XXIII

1 और उसने मुझे आकाश, पृय्वी, और समुद्र, और सब तत्वों के सब काम , उनके मार्ग और चाल, और बादलों की गड़गड़ाहट, सूर्य और चंद्रमा, तारों की चाल और परिवर्तन, ऋतुएं, वर्ष, दिन, और घंटे, हवा का बढ़ना, स्वर्गदूतों की संख्या , और उनके गीतों का निर्माण, और सभी मानवीय चीजें, प्रत्येक मानव गीत और जीवन की जीभ, आज्ञाएं, निर्देश, और मधुर आवाज वाले गायन, और वे सभी चीज़ें जो सीखना उचित है बताई।

2 और प्रवुइल ने मुझ से कहा, जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब हम लिख चुके हैं। बैठो और मानव जाति की सभी आत्माओं को लिखो, चाहे उनमें से कितने भी पैदा हुए हों, और उनके लिए अनंत काल के लिए तैयार किए गए स्थान; क्योंकि सभी आत्माएँ संसार के निर्माण से पहले, अनंत काल के लिए तैयार हैं।

3 और सब दूने तीस दिन और तीस रातें, और मैं ने सब कुछ ठीक ठीक लिख डाला, और तीन सौ छियासठ पुस्तकें लिखीं।

अध्याय 24, XXIV

1 और भगवान ने मुझे बुलाकर मुझ से कहा, हे हनोक, जिब्राएल के संग मेरी बायीं ओर बैठ।

2 और मैं ने भगवान को दण्डवत् किया, और भगवान ने मुझ से कहा, हे हनोक, हे प्रिय, जो कुछ तू देखता है, और जो कुछ समाप्त हो गया है, वह सब मैं तुझे आदि से पहिले ही बताता हूं, जो कुछ मैंने गैर से उत्पन्न किया है; अस्तित्व, और अदृश्य (आध्यात्मिक) से दृश्यमान (भौतिक) चीज़ें ।

3 हे हनोक, सुन, और मेरी ये बातें मन में रख, क्योंकि मैं ने अपना भेद अपने स्वर्गदूतों को नहीं बताया, और न उनका उदय उनको बताया है, और न अपने अनन्त राज्य का वर्णन किया, और न उन्होंने मेरी सृष्टि को समझा, जो मैं तुझ से आज कहता हूं।

4 सब वस्तुओं के दिखाई देने से पहिले , मैं ही परोक्ष (आध्यात्मिक) वस्तुओं में सूर्य के समान पूर्व से पश्चिम, और पच्छिम से पूर्व तक फिरा करता था ।

5 परन्तु सूर्य को भी अपने आप में शान्ति है, परन्तु मुझे शान्ति न मिली, क्योंकि मैं सब वस्तुओं की सृष्टि करता था, और मेरे मन में नीव डालने, और दृश्य सृष्टि रचने का विचार आया।

अध्याय 25, XXV

1 मैंने सबसे निचले (भागों) में आदेश दिया, कि दृश्य (भौतिक) चीजें अदृश्य (आध्यात्मिक) से नीचे आनी चाहिए, और एडोइल बहुत बड़े पैमाने पर नीचे आया, और मैंने उसे देखा, और देखो! उसका पेट महान प्रकाश वाला था।

2 और मैं ने उस से कहा, हे अदोएल, दूर हो जाओ, और जो कुछ दिखाई दे रहा है उसे अपने में से बाहर आने दो।

3 और वह टूट गया, और बड़ी ज्योति निकली। और मैं (था) महान प्रकाश के बीच में, और जैसे ही प्रकाश से प्रकाश पैदा होता है, वहां एक महान युग आया, और सारी सृष्टि दिखाई, जिसे मैंने बनाने के बारे में सोचा था।

4 और मैं ने देखा, कि वह अच्छा है ।

5 और मैं ने अपने लिथे एक सिंहासन रखा, और उस पर बैठ गया, और ज्योति से कहा; वहां से ऊपर उठ, और उस सिंहासन से ऊंचे स्थान पर स्थिर हो, और ऊंचे से ऊंचे कामोंकी नींव बन।

6 और ज्योति के ऊपर और कुछ नहीं, तब मैंने झुककर अपके सिंहासन पर से दृष्टि की।

अध्याय 26, XXVI

1 और मैं ने सबसे नीच को दूसरी बार बुलाया, और कहा, अरखास को जोर से निकलने दे, और वह अदृश्य (आध्यात्मिक) से जोर से निकला ।

2 और अरखास कठोर, भारी, और बहुत लाल निकला।

3 और मैंने कहा: खोलो, अर्खास, और तुमसे पैदा होने दो, और वह नष्ट हो गया, एक युग सामने आया, बहुत महान और बहुत अंधकारमय, सभी निचली चीजों के निर्माण को सहन करते हुए, और मैंने देखा कि (वह था) अच्छा और उससे कहा:

4 नीचे की ओर जाकर दृढ़ हो जाओ, और नीचे की वस्तुओंकी नींव बन जाओ, और ऐसा हुआ, और वह नीचे जाकर स्थिर हो गया, और नीचेकी वस्तुओंकी नींव बन गया, और अँध्यारे के नीचे और कुछ न रहा।

अध्याय 27, XXVII

1 और मैंने आज्ञा दी, कि उजियाले और अंधियारे से लिया जाये, और मैंने कहा, घना हो, और वह ऐसा हो गया, और मैं ने उसे उजियाले के द्वारा फैलाया, और वह जल बन गया, और मैं ने उसे नीचे अन्धियारा पर फैलाया प्रकाश, और फिर मैंने पानी को मजबूत बनाया, यानी अथाह, और मैंने पानी के चारों ओर प्रकाश की नींव बनाई, और अंदर से सात घेरे बनाए, और (पानी) को क्रिस्टल की तरह गीला और सूखा, यानी बनाया कांच की तरह कहो, (और) पानी और अन्य तत्वों की खतना, और मैंने उनमें से प्रत्येक को अपना रास्ता दिखाया, और उनमें से प्रत्येक को उसके स्वर्ग में सात सितारे दिखाए , कि वे इस प्रकार जाएं, और मैंने देखा कि यह था अच्छा।

2 और मैंने उजियाले और अन्धियारे को अलग किया, अर्यात् जल के बीच में इधर उधर अलग किया, और उजियाले से कहा, कि दिन हो, और अन्धियारे से कहा, कि रात हो; और पहिले दिन सांझ हुई, और भोर हुई।

अध्याय 28, XXVIII

1 और फिर मैंने आकाशमण्डल को दृढ़ किया, और (बनाया) कि स्वर्ग के नीचे का निचला जल एक हो गया, और सारी अव्यवस्था सूख गई, और वैसा ही हो गया।

2 लहरों से मैंने कठोर और बड़ी चट्टान बनाई, और चट्टान में से सूखी चट्टानें इकट्ठी कीं, और सूखी को मैंने पृय्वी कहा, और पृय्वी के बीच को मैंने रसातल (abyss) कहा, अर्थात अथाह कहा है, मैंने समुद्र को इकट्ठा किया एक स्थान पर रखा और उसे जूए से बाँध दिया।

3 और मैंने समुद्र से कहा, सुन, मैं तुझे अनन्त सीमा देता हूं, और तू अंगोंसे अलग न होने पाएगा।

4 इस प्रकार मैं ने तेजी से आकाशमण्डल बनाया। इस दिन मैंने मुझे प्रथम-निर्मित [रविवार] कहा।

अध्याय 29, XXIX

1 और सभी स्वर्गीय सैनिकों के लिए मैंने आग की छवि और सार की कल्पना की, और मेरी आंख ने बहुत कठोर, दृढ़ चट्टान को देखा, और मेरी आंख की चमक से बिजली ने अपनी अद्भुत प्रकृति प्राप्त की, (जो) दोनों जल में आग है और आग में जल है, और एक दूसरे को नहीं बुझाता, और न एक दूसरे को सुखाता है, इस कारण बिजली सूर्य से अधिक चमकीली, पानी से नरम और कड़ी चट्टान से अधिक मजबूत है।

2 और चट्टान में से मैंने बड़ी आग को काटा, और उस आग में से मैंने स्वर्गदूतों की निराकार दस टोलियों की पंक्तियाँ बनाईं, और उनके हथियार अग्निमय और उनके वस्त्र धधकती हुई ज्वाला के हैं, और मैंने आज्ञा दी, कि हर एक अपनी अपनी रीति पर खड़ा हो।

3 और स्वर्गदूतों की टोली में से एक ने, जो व्यवस्था उसके आधीन थी उस से फिरकर, एक अनहोनी कल्पना की, कि अपना सिंहासन पृय्वी के ऊपर बादलों से भी ऊंचा करे, कि वह मेरी शक्ति के बराबर हो जाए।

4 और मैंने उसके दूतोंके साथ उसको ऊंचे से फेंक दिया, और वह अथाह आकाश के ऊपर लगातार उड़ता रहा।

अध्याय 30, XXX

1 तीसरे दिन मैं ने पृय्वी को आज्ञा दी कि बड़े और फलदार वृक्ष, और पहाड़ियां उगाएं, और बोने के लिथे बीज बोएं, और मैं ने स्वर्ग लगाया, और उसे घेर लिया, और हथियारबंद (संरक्षक) ज्वलंत स्वर्गदूतों को रखा, और इस प्रकार मैंने नवीनीकरण किया।

2 फिर सांझ हुई, और चौथे दिन भोर हुआ।

3 [बुधवार]। चौथे दिन मैंने आज्ञा दी कि स्वर्गीय मंडलों पर बड़ी रोशनी होनी चाहिए।

4 पहले सबसे ऊपरी घेरे पर मैंने सितारे रखे, क्रुनो, और दूसरे पर एफ्रोडिट, तीसरे पर एरिस, पांचवें पर ज़ौस, छठे पर एर्मिस, सातवें पर छोटे चंद्रमा, और इसे छोटे सितारों से सजाया।

5 और नीचे की ओर मैंने दिन के उजियाले के लिये सूर्य को, और रात के उजियाले के लिये चान्द और तारे को रखा।

6 और सूर्य को प्रत्येक नक्षत्र के अनुसार जाना चाहिए, बारह, और मैंने महीनों का क्रम, और उनके नाम, और जीवन, उनका गरजना, और उनके घंटे-चिह्न ठहराए, कि वे किस रीति से सफल हों।

7 फिर सांझ हुई, और पांचवें दिन भोर हुई।

8 [गुरुवार]। पांचवें दिन मैं ने समुद्र को आज्ञा दी, कि उस से मछलियां, और भांति भांति के पंखवाले पक्षी, और पृय्वी पर रेंगनेवाले, और चार पांवोंके बल पृय्वी पर चलनेवाले, और आकाश में उड़नेवाले, नर, मादा, सब जन्तु निकलें।, और हर आत्मा जीवन की भावना में सांस ले रही है।

9 और सांझ हुई, और छठवें दिन भोर हुआ।

10 [शुक्रवार]। छठे दिन मैंने अपनी बुद्धि को मनुष्य को सात तत्वों से बनाने की आज्ञा दी: एक, पृथ्वी पर से उसका मांस; दो, ओस से उसका खून; तीन, उसकी आँखें सूर्य से; चार, उसकी हड्डियाँ पत्थर की; पाँच, उसकी बुद्धि स्वर्गदूतों और बादल की तेज़ी से; छ: उसकी नसें, और बाल पृय्वी की घास से; सात, उसकी आत्मा मेरी सांस और हवा से.

11 और मैंने उसे सात स्वभाव दिए: शरीर को सुनना, देखने के लिए आंखें, आत्मा को गंध, स्पर्श के लिए नसें, स्वाद के लिए खून, सहनशक्ति के लिए हड्डियां, बुद्धि के लिए मिठास [आनंद]।

12 मैं ने एक धूर्त कहावत गढ़ी, कि मैं ने मनुष्य को अदृश्य (आध्यात्मिक) और दृश्य (भौतिक) प्रकृति से उत्पन्न किया, उसकी मृत्यु, जीवन और छवि दोनों हैं, वह वाणी को किसी रची हुई वस्तु के समान जानता है, महानता में छोटा और फिर महान लघुता, और मैंने उसे पृथ्वी पर रखा, एक दूसरा देवदूत, सम्माननीय, महान और गौरवशाली, और मैंने उसे पृथ्वी पर शासन करने और अपनी बुद्धि रखने के लिए शासक के रूप में नियुक्त किया, और मेरे सभी मौजूदा प्राणियों में से पृथ्वी पर उसके जैसा कोई नहीं था।

13 और मैं ने उसके चारोंओर पूर्व, पच्छिम, दक्खिन, और उत्तर में से एक नाम रखा, और उसके लिये चार विशेष तारे ठहराए, और मैं ने उसका नाम आदम रखा, और उसे दो मार्ग दिखाए, प्रकाश और अंधकार, और मैंने उससे कहा:

14 यह भला है, और वह बुरा, कि मैं जान लूं, कि उस को मुझ से प्रेम या बैर है, कि प्रगट हो जाए, कि उसकी जाति में से कौन मुझ से प्रेम रखता है।

15 क्योंकि मैं ने तो उसका स्वभाव तो देखा है, परन्तु उस ने अपना स्वभाव नहीं देखा, इसलिये न देखने से वह और भी बुरा पाप करेगा, और मैं ने कहा, पाप के बाद मृत्यु के सिवा और क्या है?

16 और मैं ने उस में नींद डाल दी, और वह सो गया। और मैं ने उस से एक पसली ली, और उसके लिये एक पत्नी उत्पन्न की, कि उसकी पत्नी के द्वारा वह मृत्यु को प्राप्त हो, और मैं ने उसका अन्तिम वचन लेकर उसका नाम माता अर्थात् ईवा रखा ।

अध्याय 31, XXXI

1 आदम को पृय्वी पर जीवन मिला है, और मैं ने पूर्व में अदन में एक बाटिका बनाई, कि वह वाचा का पालन करे, और आज्ञा को माने।

2 मैंने उसके लिये आकाश खोल दिया, कि वह स्वर्गदूतों को जय का गीत गाते हुए, और बिना अन्धकारमय प्रकाश को देखे।

3 और वह लगातार स्वर्ग में था, और शैतान समझ गया कि मैं एक और दुनिया बनाना चाहता था, क्योंकि आदम पृथ्वी पर प्रभु था, उस पर शासन और नियंत्रण करने के लिए।

4 शैतान निचले स्थानों की दुष्ट आत्मा है, एक भगोड़े के रूप में उसने सोतोना (Sotona) को स्वर्ग से बनाया क्योंकि उसका नाम शैतानेल (Satanail) (शैतान) था, इस प्रकार वह स्वर्गदूतों से अलग हो गया, (लेकिन उसके स्वभाव ने) उसकी बुद्धि को नहीं बदला जहाँ तक (उसकी) धर्मी और पापी (चीज़ों) की समझ है ।

5 और उस ने अपनी निन्दा को, और उस पाप को जो पहिले किया या, जान लिया, इसलिये उस ने आदम के विरूद्ध मन में विचार किया, इस रीति से उस ने भीतर प्रवेश करके हव्वा को तो बहकाया, परन्तु आदम को न छुआ ।

6 परन्तु मैंने अज्ञान को तो शाप दिया, परन्तु जिस को मैं ने पहिले आशीर्वाद दिया या, उसे मैंने शाप नहीं दिया; मैंने न मनुष्य को, और न पृय्वी को, और न अन्य प्राणियों को, परन्तु मनुष्य के बुरे फल को, और उसके कामों को शाप दिया है।

अध्याय 32, XXXII

1 मैंने उस से कहा, तू तो पृय्वी है, और जिस पृय्वी में मैंने तुझे पहुंचाया उसी में तू जाएगा; और मैं तुझे नाश न करूंगा, परन्तु जहां से मैंने तुझे निकाला वहीं भेज दूंगा।

2 तब मैं अपनी दूसरी उपस्थिति में फिर तुम्हें ग्रहण कर सकूंगा।

3 और मैंने अपने सब प्राणियों को जो दृश्य (भौतिक) और अदृश्य (आध्यात्मिक) आशीर्वाद दिया । और आदम साढ़े पांच घंटे स्वर्ग में था ।

4 और मैंने सातवें दिन को अर्थात विश्रामदिन को आशीष दी, जिस दिन उस ने अपने सब कामों से विश्राम किया।

अध्याय 33, XXXIII

1 और मैंने आठवां दिन भी ठहराया, कि आठवां दिन मेरे काम के बाद का पहला दिन होना चाहिए, और वह (पहले सात) सातवें हजार के रूप में घूमें, और आठवें हजार के आरम्भ में हो एक ऐसा समय हो जिसकी कोई गिनती न हो, अंतहीन, जिसमें न तो वर्ष, न महीने, न सप्ताह, न दिन और न ही घंटे हों।

2 और अब, हनोक , जो कुछ मैंने तुझ से कहा है, जो कुछ तू ने समझा है, जो कुछ तूने स्वर्गीय वस्तुओंके विषय में देखा है, और जो कुछ तूने पृय्वी पर देखा है, और जो कुछ मैंने अपनी बड़ी बुद्धि से पुस्तकोंमें लिखा है, वह सब इन चीज़ों को मैंने ऊपरी नींव से लेकर निचली और अंत तक तैयार और निर्मित किया है, और मेरी रचनाओं का कोई सलाहकार या उत्तराधिकारी नहीं है।

3 मैं स्वयं शाश्वत हूं, हाथों से नहीं बना हूं और परिवर्तन रहित हूं।

4 मेरा विचार ही मेरा परामर्शदाता है, मेरी बुद्धि और मेरा वचन रचा गया है, और मेरी आंखें सब वस्तुओं को देखती हैं, कि वे यहां कैसे खड़े और भय से कांपते हैं।

5 यदि मैं अपना मुंह फेर लूं, तो सब वस्तुएं नाश हो जाएं।

6 और हे हनोक, अपना दिमाग लगा, और जो तुझ से बातें करता है, उसे जान, और जो पुस्तकें तूने आप ही लिखी हैं, उन्हें ले ले।

7 और मैं तुम्हें सैमुअल (Samuil) और रागुइल (Raguil), जो तुम्हें ले आए, और पुस्तकें सौंपता हूं, और तुम पृय्वी पर जाकर जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, और जो कुछ तुम ने देखा है, नीचे से स्वर्ग से लेकर मेरे सिंहासन तक, और सभी सैनिक, सब तुम्हारे पुत्रों को बताओ।

8 क्योंकि मैंने सब शक्तियां उत्पन्न की हैं, और कोई मेरा विरोध नहीं करता या मेरे वश में न हो। क्योंकि सब लोग मेरे राजतन्त्र के आधीन रहते हैं, और मेरे एकमेव शासन के लिये परिश्रम करते हैं।

9 उन्हें लिखावट की पुस्तकें दो, और वे उन्हें पढ़ेंगे, और मुझे सब वस्तुओं का रचयिता जान लेंगे, और समझ लेंगे कि मुझे छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं।

10 और वे तेरी लिखावट की पुस्तकें बच्चों से बच्चे, पीढ़ी-दर-पीढ़ी, राष्ट्रों से राष्ट्रों तक में बांटते रहें।

11 और हे हनोक, हे मेरे मध्यस्थ, राजधिपति मीकाएल, मैं तुझे तेरे पितरों आदम, शेत, एनोस, केनान, महललील, और तेरे पिता येरेद की लिखावट के बदले में दे दूंगा।

अध्याय 34, XXXIV

1 उन्होंने मेरी आज्ञाओं और मेरे जूए को तुच्छ जाना है, निकम्मे वंश निकल आए हैं, वे परमेश्वर से नहीं डरते, और उन्होंने मेरे सामने झुकना नहीं चाहा, परन्तु निकम्मे देवताओं के सामने झुकना शुरू कर दिया है, और मेरी एकता को अस्वीकार कर दिया है, और सारी पृय्वी पर बोझ बन गए हैं झूठ, अपराधों, घृणित व्यभिचार, अर्थात् एक दूसरे के साथ, और अन्य सभी प्रकार की अशुद्ध दुष्टता के साथ, जिनका संबंध बताना घृणित है।

2 और इस कारण मैं पृय्वी पर जलप्रलय डालूंगा, और सब मनुष्योंको नाश करूंगा, और सारी पृय्वी बड़े अन्धकार में ढह जाएगी।

अध्याय 35, XXXV

1 देखो, उनके वंश से बहुत बाद में एक और पीढ़ी उत्पन्न होगी, परन्तु उनमें से बहुत से बहुत अतृप्त होंगे ।

2 जो उस पीढ़ी का पालन-पोषण करेगा, वह उन पर तेरी लिखावट की, तेरे पुरखाओं की पुस्तकें प्रगट करेगा, (उन्हें) वह उनको दुनिया के सरंक्षक के बारे में बताएगा, खासकर उनको जो विश्वासयोग्य पुरूष हैं, और वह कार्यकर्ता, जो मेरी पसंद के हैं, जो मेरा नाम व्यर्थ में नहीं लेते। 

3 और वे दूसरी पीढ़ी को सुनाएंगे, और जो पढ़ेंगे वे पहिले से भी अधिक महिमा पाएंगे।

अध्याय 36, XXXVI

1 अब हे हनोक, मैं तुम्हें अपने घर में रहने के लिये तीस दिन की मोहलत देता हूं, और अपने पुत्रों और अपने सारे घराने को बताओ, कि जो कुछ तू उन से कहता है, सब मेरे मुंह से सुनें, और पढ़कर समझें, कि किस प्रकार मेरे अलावा कोई दूसरा भगवान नहीं है

2 और वे मेरी आज्ञाओं को सर्वदा मानते रहें, और तेरी लिखावट की पुस्तकें पढ़ने और ग्रहण करने लगें।

3 और तीस दिन के बाद मैं अपके दूत को तुम्हारे पास भेजूंगा, और वह तुम को पृय्वी पर से और तुम्हारे बेटोंके पास से मेरे पास ले आएगा।

अध्याय 37, XXXVII

1 और प्रभु ने पुराने स्वर्गदूतों में से एक को बुलाया, जो भयानक और खतरनाक था, और उसे मेरे पास रखा, बर्फ की तरह सफेद, और उसके हाथ बर्फ की तरह थे, जो महान ठंढ की तरह दिखते थे, और उसने मेरे चेहरे को ठंडा कर दिया, क्योंकि जिस प्रकार चूल्हे की आग, सूर्य की गर्मी, और वायु की शीत को सहना असम्भव है, उसी प्रकार मैं भगवान का भय सह नहीं सकता।

2 और भगवान ने मुझ से कहा, हे हनोक, यदि तेरा मुंह यहां न जमे (ठंडा), तो कोई तेरा मुंह न देख सकेगा।

अध्याय 38, XXXVIII

1 और भगवान ने उन मनुष्योंसे जो पहिले मुझे ले आए थे कहा, हनोक तुम्हारे संग पृय्वी पर चले, और नियत दिन तक उसकी बाट जोहते रहो।

2 और उन्होंने मुझे रात को मेरे बिछौने पर लिटा दिया।

3 और मतूसलह (Methuselah) जो मेरे आने की बाट जोहता, और रात दिन मेरे बिछौने पर जागता, मेरा आना सुनकर विस्मय से भर गया, और मैं ने उस से कहा, मेरे सारे घराने को इकट्ठे होने दे, कि मैं उनको सब बातें बता दूं।

अध्याय 39, XXXIX

1 हे मेरे बच्चों, हे मेरे प्रियो, जितना प्रभु की इच्छा के अनुसार हो, अपने पिता की चितौनी सुनो।

2 आज मुझे तुम्हारे पास आने की आज्ञा दी गई है, कि मैं अपने मुंह से नहीं, पर प्रभु के मुंह से तुम्हे सब कुछ बताऊं, जो कुछ है, और जो कुछ था, और जो कुछ अब है, और जो कुछ न्याय के दिन (judgement day) तक रहेगा।

3 क्योंकि भगवान ने मुझे तुम्हारे पास आने दिया है, इसलिये तुम मेरे होठों की बातें सुनते हो, जो तुम्हारे लिये बड़ा किया गया है, परन्तु मैं वह हूं जिस ने भगवान का मुख देखा है, लोहे के समान जो आग से चमकता है। चिंगारी निकलती है और जलती है।

4 अब तुम मेरी आंखों को देखो, एक आदमी की आँखें जो तुम्हारे लिए अर्थ से भरी हुई बड़ी हैं, परन्तु मैं ने प्रभु की आंखों को देखा है, जो सूर्य की किरणों के समान चमकती और मनुष्य की आंखों को विस्मय से भर देती हैं।

5 हे मेरे बालको, तुम अब उस मनुष्य का दहिना हाथ देखते हो जो तुम्हारी सहायता करता है, परन्तु मैंने भगवान का दाहिना हाथ स्वर्ग भरते हुए देखा है, जिस ने मेरी सहायता की।

6 तुम मेरे काम की दिशा (compass) को अपनी दृष्टि में देखते हो, परन्तु मैं ने प्रभु की असीम और सिद्ध दिशा को देखा है, जिसका अन्त नहीं।

7 तुम मेरे होठों के वचन सुनते हो, जैसे मैंने प्रभु के वचन सुने, बादलों के गरजने के साथ लगातार तेज गड़गड़ाहट हो।

8 और अब हे मेरे बालकों, पृय्वी के पिता की बातें सुनो, पृय्वी के हाकिम के साम्हने आना कितना डरावना और भयानक है; स्वर्ग का शासक के साम्हने आना और भी डरावना और भयानक है, जो जीवित और मृत लोगों का और स्वर्गीय सैनिकों का नियंत्रक (न्यायाधीश) है। उस अंतहीन दर्द को कौन सह सकता है?

अध्याय 40, XL

1 और अब, हे मेरे बच्चों, मैं सब कुछ जानता हूं, क्योंकि यह प्रभु के मुख से निकला है, और इसे मेरी आंखों ने आदि से अंत तक देखा है।

2 मैं सब बातें जानता हूं, और सब बातें किताबों में लिख चुका हूं, आकाश और उनका अंत, और उनकी बहुतायत, और सारी सेनाएं और उनकी यात्राएं।

3 मैं ने तारों को और उनकी बड़ी अनगिनित भीड़ को नापा और उनका वर्णन किया है ।

4 किस मनुष्य ने उनकी क्रांतियां, और उनके प्रवेश द्वार देखे हैं? क्योंकि स्वर्गदूत भी उनकी संख्या नहीं देखते, जबकि मैंने उन सब के नाम लिख रखे हैं।

5 और मैं ने सूर्य का घेरा नापा, और उसकी किरणें नापी, और घंटे गिन लिए, और जो कुछ पृय्वी के ऊपर चलता है, वह सब मैं ने लिख लिया, और जो कुछ पोषित होता है, और जो बीज बोया या बिना बोया जाता है, जो पृय्वी उपजाती है, वह सब मैं ने लिख लिया। सभी पौधे, और हर घास और हर फूल, और उनकी मीठी गंध, और उनके नाम, और बादलों के निवास स्थान, और उनकी संरचना, और उनके पंख, और वे बारिश और बारिश की बूंदों को कैसे वहन करते हैं।

6 और मैंने सब बातों की जांच की, और गरजने और बिजली के चलने का मार्ग लिखा, और उन्होंने मुझे कुंजियां और उनके रखवाले, उनके उठने और उनके चलने का मार्ग दिखाया; इसे एक श्रृंखला द्वारा मापकर (धीरे से) छोड़ा जाता है, ऐसा न हो कि एक भारी श्रृंखला और हिंसा के द्वारा यह क्रोधित बादलों को गिरा दे और पृथ्वी पर सभी चीजों को नष्ट कर दे।

7 मैंने बर्फ के भण्डार, और ठण्डे और ठंडी हवाओं के भण्डार लिखे, और मैंने उनके ऋतु के मुख्य धारक को देखा, वह बादलों को उन से भर देता है, और भण्डार को समाप्त नहीं करता।

8 और मैं ने पवनों के विश्रामस्थानों को लिखा, और उनके मुख्य धारकों को तराजू और नापों को उठानेवालों को देखा; सबसे पहले, उन्होंने उन्हें (एक) तराजू में रखा, फिर दूसरे में बाट और उन्हें माप के अनुसार पूरी पृथ्वी पर चालाकी से छोड़ दिया, ऐसा न हो कि वे जोर से सांस लेकर पृथ्वी को हिला दें।

9 और मैं ने सारी पृय्वी, और उसके पहाड़, और सब पहाड़ियां, और मैदान, और वृक्ष, पत्थर, और नदियां, और जो कुछ मैंने लिखा, सब नापा, पृय्वी से सातवें आकाश तक की ऊंचाई, और नीचे से नीचे के अधोलोक तक की ऊंचाई, और न्याय-स्थान, और अत्यंत महान, खुला और रोता हुआ नरक।

10 और मैं ने देखा, कि कैदी असीम न्याय की आशा करते हुए किस प्रकार पीड़ा में हैं।

11 और मैंने उन सभों को, जिनका न्यायी न्याय कर रहा था, और उनके सब न्याय (और सजा) और उनके सब कामों को लिख लिया।

अध्याय 41, XLI

1 और मैंने आदम और हव्वा के साथ सब समय के सब पुरखों को देखा, और मैंने आह भरी, और फूट-फूटकर रोने लगा, और उनके अपमान के विषय में कहने लगा:

2 मेरी और मेरे पुरखाओं की निर्बलता के कारण मुझ पर धिक्कार है, और अपने मन में सोचकर कहा;

3 धन्य है वह पुरूष जो न जन्मा हो, व उत्पन्न हुआ हो, और भगवान के साम्हने पाप न करे, कि इस स्थान में न आए, और न इस स्थान का जूआ लेकर आए।

अध्याय 42, XLII

1 और मैंने नर्क के फाटकोंके मुख्य धारकों को और पेहरेदारों को बड़े बड़े सांपोंके समान खड़े देखा, और उनके मुख बुझते हुए दीपकों के समान, और उनकी आंखें आग की सी और उनके पैने दांत थे, और मैंने भगवान के सब काम देखे, कि वे कैसे ठीक हैं, जबकि मनुष्य के काम कुछ (अच्छे) और कुछ बुरे होते हैं, और जो लोग बुरे झूठ बोलते हैं, वे अपने कामों में जाने जाते हैं।

अध्याय 43, XLIII

1 मैंने, मेरे बच्चों, हर एक काम, और हर नाप, और हर एक धर्ममय न्याय को नापा और लिखा है।

2 जैसे (एक) वर्ष दूसरे से अधिक आदरयोग्य है, वैसे ही (एक) मनुष्य भी दूसरे से अधिक आदरयोग्य है, कोई बड़ी संपत्ति के कारण, कोई हृदय की बुद्धि के कारण, कोई विशेष बुद्धि के कारण, कोई चतुराई के कारण, कोई होठों की खामोशी के कारण, कोई और एक स्वच्छता के लिए, एक ताकत के लिए, दूसरा सुन्दरता के लिए, एक जवानी के लिए, दूसरा तेज बुद्धि के लिए, एक शरीर के आकार के लिए, दूसरा संवेदनशीलता के लिए, इसे हर जगह सुना जाए, लेकिन जो ईश्वर से डरता है उससे बेहतर कोई नहीं है , वह आने वाले समय में और अधिक गौरवशाली होगा।

अध्याय 44, XLIV

1 भगवान ने अपने हाथों से मनुष्य को उत्पन्न करके, अपने स्वरूप के अनुसार उसे छोटा और बड़ा बनाया।

2 जो कोई हाकिम की निन्दा करता, और भगवान के चेहरे से घृणा करता है, उस ने भगवान के चेहरे का तिरस्कार किया है; और जो बिना हानि पहुंचाए किसी मनुष्य पर क्रोध भड़काता है, उस को भगवान का बड़ा कोप काट डालेगा; मनुष्य का तिरस्कारपूर्ण चेहरा, प्रभु के महान न्याय में काट दिया जाएगा।

3 क्या ही धन्य वह पुरूष है, जो अपने मन में किसी के प्रति द्वेष नहीं रखता, और घायल और दोषी की सहाथता करता है, और टूटे हुओं को उठाता है, और दरिद्रों को दान देता है, क्योंकि बड़े न्याय के दिन हर एक तौल, नाप और हर एक बाट बाजार के समान होगा, अर्थात् वे तराजू पर लटकाए जाएंगे और बाजार में खड़े होंगे, (और हर कोई) अपना नाप देख लेगा, और अपने नाप के अनुसार अपना इनाम लेगा।

अध्याय 45, XLV

1 जो कोई भगवान के साम्हने भेंट चढ़ाने में उतावला होता है, भगवान उसके काम का फल देकर उस भेंट को शीघ्रता से पहुंचाता है।

2 परन्तु जो कोई अपना दीपक भगवान के साम्हने बढ़ाकर सच्चा न्याय नहीं करता, भगवान उसके भण्डार को परमलोक में नहीं बढ़ाएगा ।

3 जब प्रभु रोटी, या मोमबत्तियां, या (पशुओं का) मांस, या कोई अन्य बलिदान मांगता है, तो वह कुछ भी नहीं है; परन्तु परमेश्वर शुद्ध हृदयों की मांग करता है, और इन सबके साथ (केवल) मनुष्य के हृदय की परीक्षा करता है।

अध्याय 46, XLVI

1 हे मेरे लोगो, सुनो, और मेरे होठों के वचन ग्रहण करो।

2 यदि कोई पृय्वी के हाकिम के पास कुछ भेंट लाए, और उसके मन में विश्वासघात की कल्पना हो, और हाकिम यह बात जानता हो, तो क्या वह उस पर क्रोध न करेगा, और उसकी भेंटें ठुकरा न देगा, और उसे न्याय के लिये सौंप न देगा?

3 या यदि एक मनुष्य जीभ से धोखा देकर अपने आप को दूसरे के सामने भला दिखाता हो, परन्तु उसके मन में बुराई हो, तो क्या दूसरा उसके मन का विश्वासघात न समझेगा, और स्वयं दोषी न ठहरेगा, क्योंकि उस का झूठ सभी के लिए स्पष्ट है?

4 और जब भगवान बड़ी ज्योति भेजेगा, तब धर्मी और अधर्मी दोनों का न्याय होगा, और वहां कोई भी बच न पाएगा।

अध्याय 47, XLVII

1 और अब हे मेरे बालको, अपने अपने मन में विचार करो, और अपने पिता के वचनोंको जो भगवान के मुंह से तुम्हारे पास पहुंचे हैं, भलीभांति स्मरण रखो।

2 अपने पिता की लिखावट की ये पुस्तकें लो और पढ़ो।

3 क्योंकि बहुत सी पुस्तकें हैं, और उन से तुम भगवान के सब काम पाओगे, जो सृष्टी के आरम्भ से होते आए हैं, और अन्त तक बने रहेंगे।

4 और यदि तुम मेरी लिखावट पर ध्यान दोगे, तो भगवान के विरूद्ध पाप न करोगे; क्योंकि प्रभु को छोड़ और कोई नहीं है, न स्वर्ग में, न पृय्वी में, न अति निचले (स्थानों में) में, न (एक) बुनियाद में ।

5 भगवान ने अज्ञात में नींव डाली, और दृश्य (भौतिक) और अदृश्य (आध्यात्मिक) स्वर्ग फैलाया है; उसी ने पृय्वी को जल के ऊपर स्थिर किया, और अनगिनित प्राणियों की सृष्टि की, और जिसने जल को, और न स्थिर की नींव को, या पृय्वी की धूल को, या समुद्र की रेत को, या वर्षा की बूंदों को, या सुबह की ओस, या हवा की सांसों को गिन लिया है? किस ने पृय्वी, समुद्र, और अघुलनशील शीतकाल को भर दिया है?

6 मैंने तारोंको आग में से काटा, और आकाश को सजाकर उनके बीच में रखा है।

अध्याय 48, XLVIII

1 कि सूर्य सात स्वर्गीय वृत्तों में, जो एक सौ बयासी सिंहासनों का निरूपण हैं, भ्रमण करे, कि वह छोटे दिन में अस्त हो जाए, और फिर एक सौ बयासी सिंहासन पर, कि वह बड़े दिन में अस्त हो जाए, और उसके पास दो सिंहासन हैं जिन पर वह आराम करता है, महीनों के सिंहासनों के ऊपर इधर-उधर घूमता है, त्सिवान महीने के सत्रहवें दिन से यह थेवान महीने तक चला जाता है, थेवन के सत्रहवें दिन से यह ऊपर चला जाता है।

2 और इस प्रकार वह पृय्वी के निकट जाता है, तब पृय्वी आनन्दित होकर अपने फल उगाती है, और जब वह दूर हो जाती है, तब पृय्वी उदास हो जाती है, और वृक्षोंऔर सब फलोंमें फूल नहीं लगते।

3 यह सब उस ने घण्टोंकी अच्छी माप से नापा, और अपनी बुद्धि से दृश्य (भौतिक) और अदृश्य (आध्यात्मिक) का एक माप निश्चित किया ।

4 उस ने अदृश्य (आध्यात्मिक) से सब वस्तुओं को दृश्य (भौतिक) बनाया, और स्वयं अदृश्य (आध्यात्मिक) रहा ।

5 हे मेरे बच्चों, मैं तुम्हें यह बताता हूं, अपने बच्चों को, अपनी सभी पीढ़ियों में, और उन राष्ट्रों के बीच किताबें वितरित करें जिसमें परमेश्वर से डरने की भावना होगी, वे उन्हें ग्रहण करें, और वे उन से और अधिक प्रेम करें किसी भी भोजन या सांसारिक मिठाइयों की तुलना में और उन्हें पढ़ें और खुद को उन पर लागू करें।

6 और जो प्रभु को नहीं समझते, जो परमेश्वर से नहीं डरते, जो ग्रहण नहीं करते, वरन अस्वीकार करते हैं, जो (पुस्तकें) ग्रहण नहीं करते , उन पर भयानक न्याय आनेवाला है।

7 क्या ही धन्य वह पुरूष है, जो उनका जूआ उठाकर उन्हें घसीट ले जाएगा, क्योंकि बड़े न्याय के दिन वह छुड़ाया जाएगा।

अध्याय 49, XLIX

1 हे मेरे बालको, मैं तुम से शपथ खाता हूं, परन्तु किसी भी प्रकार की शपथ नहीं खाता, न आकाश की, न पृय्वी की, न किसी और प्राणी की जो परमेश्वर ने सृजी है।

2 भगवान ने कहा, मुझ में न शपय है, न कुटिलता, परन्तु सत्य है।

3 यदि मनुष्यों में सच्चाई न हो, तो वे हां, हां, या नहीं, नहीं, इन शब्दों की शपथ खाएं।

4 और मैं तुम से शपथ खाता हूं, हां, हां, कि कोई मनुष्य अपनी मां के गर्भ में नहीं रहा है, (लेकिन वह) पहले से ही, यहां तक कि हर एक के लिए उस आत्मा की शांति के लिए एक जगह तैयार की गई है, और एक माप निर्धारित किया गया है अधिकांशतः यह अभिप्राय है कि इस संसार में मनुष्य का परीक्षण किया जाये।

5 हां, हे बच्चों, अपने आप को धोखा न दो, क्योंकि मनुष्य की हर एक आत्मा के लिये पहिले से जगह तैयार की गई है।

अध्याय 50, L

1 मैं ने हर एक मनुष्य का काम लिख दिया है, और पृय्वी पर जो कोई उत्पन्न हुआ है, वह छिपा न रह सकेगा, और न उसके काम छिपे रह सकेंगे।

2 मैं सभी चीजें देखता हूं.

3 इसलिये अब हे मेरे बच्चों, जितने दिन तुम अनन्त जीवन के वारिस हो उतने दिन धीरज और नम्रता से बिताओ।

4 प्रभु के लिये हर एक घाव, हर चोट, हर बुरी बात और आक्रमण को सह लो।

5 यदि तुम पर कोई विपत्ति आए, तो न तो अपने पड़ोसी के पास लौटना, और न शत्रु के पास, क्योंकि भगवान उन्हें तुम्हारे लिये लौटा देगा, और बड़े न्याय के दिन तुम्हारा बदला लेगा, और यहां मनुष्यों के बीच बदला न लेना।

6 तुम में से जो कोई अपने भाई के लिये सोना वा चान्दी खर्च करेगा, उसे परलोक में बहुत धन मिलेगा।

7 न विधवाओं, न अनाथों, न अजनबियों को हानि पहुँचाना, ऐसा न हो कि परमेश्‍वर का क्रोध तुम पर भड़के।

अध्याय 51, LI

1 अपनी शक्ति के अनुसार कंगालों की ओर हाथ बढ़ाओ।

2 अपनी चाँदी भूमि में न छिपाओ;

3 क्लेश में विश्वासयोग्य मनुष्य की सहायता करो, और संकट के समय क्लेश तुम्हारा पीछा न कर सकेगा।

4 और जो भी कठिन और क्रूर जूआ तुम पर पड़ेगा, वह सब भगवान के लिये सह लो, और न्याय के दिन तुम अपना प्रतिफल पाओगे।

5 अपने सृजनहार की महिमा के लिये सवेरे, दोपहर, और सांझ को भगवान के निवास में जाना अच्छा है।

6 क्योंकि हर सांस लेने वाली (वस्तु) उसकी महिमा करती है, और दिखाई देने वाली (भौतिक) और अदृश्य (आध्यात्मिक) हर प्राणी उसकी प्रशंसा करती है।

अध्याय 52, LII

1 धन्य वह पुरूष है, जो सबाओत (Sabaoth) के परमेश्वर की स्तुति में अपना मुंह खोलता है, और दिल से भगवान की स्तुति करता है।

2 जो मनुष्य अपके पड़ोसी को तुच्छ ठहराने और निन्दा करने के लिथे मुंह खोलता है, वह शापित है; क्योंकि वह परमेश्वर का अपमान करता है।

3 धन्य वह है, जो मुंह खोलकर परमेश्वर की स्तुति करता और धन्यवाद करता है ।

4 वह जीवन भर भगवान के साम्हने शापित रहेगा, जो अपके मुंह से शाप और गाली देता हो।

5 धन्य वह है जो भगवान के सब कामों पर आशीष देता है।

6 शापित है वह जो प्रभु की सृष्टि का अपमान करता है।

7 धन्य वह है, जो नीचे दृष्टि करके गिरे हुओं को उठाता है।

8 शापित है वह जो पराई वस्तु पर दृष्टि रखता और उसके नाश की आशा करता है।

9 धन्य वह है, जो आरम्भ से अपने पुरखों की नींव पक्की करके रखता है।

10 शापित है वह जो अपने पुरखों की विधियों को पलट देता है।

11 धन्य है वह, जो मेल और प्रेम फैलाता है।

12 शापित है वह जो अपने पड़ोसियों से प्रेम रखनेवालों को सताता है।

13 धन्य वह है, जो सब से नम्र जीभ और मन से बातें करता है।

14 शापित है वह जो अपनी जीभ से मेल की बातें बोलता है, और उसके हृदय में शांति नहीं, केवल तलवार रहती है।

15 क्योंकि बड़े न्याय के दिन ये सब वस्तुएं तराजू और पुस्तकों में प्रगट हो जाएंगी।

अध्याय 53, LIII

1 और अब हे मेरे बच्चों, यह न कहना, कि हमारा पिता परमेश्वर के साम्हने खड़ा होकर हमारे पापोंके लिथे प्रार्थना करता है, क्योंकि पाप करनेवाले का कोई सहायक नहीं।

2 तुम देखते हो, कि कैसे मैंने हर आदमी की सारी रचनाएँ लिखीं, उसकी सृष्टी से पहिले, अर्थात् सब मनुष्यों का सब काम जो सदा से सब मनुष्यों में होता आया है, लिखा है; और मेरी लिखावट कोई नहीं बता सकता, और न बता सकता है, क्योंकि प्रभु मनुष्य के सब कल्पनाओं को देखता है, कि वे कैसे होते हैं व्यर्थ, वे हृदय के भण्डारों में कहाँ पड़े हैं।

3 और अब हे मेरे बच्चों, जो बातें मैं तुम से कहता हूं उन सब पर ध्यान रखो, ऐसा न हो कि तुम यह कहकर पछताओगे, कि हमारे पिता ने हम से क्यों न कहा?

अध्याय 54, LIV

1 उस समय, समझ नहीं आये, ये पुस्तकें जो मैंने तुम्हें दी हैं, इन्हें अपनी शांति की विरासत बनने दें।

2 और उनको सब चाहनेवालोंको सौंप दो, और उन्हें बताओ, कि वे भगवान के बड़े और आश्चर्य के काम देखें।

अध्याय 55, LV

1 हे मेरे बच्चों, देखो, मेरा कार्यकाल और समय निकट आ गया है ।

2 क्योंकि जो स्वर्गदूत मेरे साय चलेंगे, वे मेरे साम्हने खड़े होकर मुझ से बिनती करते हैं, कि मैं तुम्हारे पास से चला जाऊं; वे यहाँ पृथ्वी पर खड़े हैं, और जो उन्हें बताया गया है उसका इंतज़ार कर रहे हैं।

3 क्योंकि कल मैं स्वर्ग पर, अर्थात ऊपरवाले यरूशलेम (uppermost Jerusalem) में अपने सनातन निज भाग पर चढ़ जाऊंगा।

4 इसलिये मैं तुम से बिनती करता हूं, कि प्रभु के साम्हने उसकी सारी भलाई पूरी करो।

अध्याय 56, LVI

1 मतोसलाम (Mathosalam) ने अपके पिता हनोक को उत्तर दिया, हे पिता, जो तुझे भाता है, उसे मैं तेरे साम्हने बनाऊं, कि तू हमारे घरों और अपके पुत्रों को आशीष दे, और तेरी प्रजा तेरे द्वारा महिमामय हो, और तब (ताकि) तुम इस प्रकार प्रस्थान कर सको, जैसा कि प्रभु ने कहा था?

2 हनोक ने अपके पुत्र मथोसलाम को उत्तर दिया, और कहा, सुन, हे बालक, जब से भगवान ने अपनी महिमा के इत्र से मेरा अभिषेक किया, तब से मुझ में भोजन नहीं रहा, और मेरी आत्मा को सांसारिक सुख की सुधि नहीं रही, और न मुझे सांसारिक कुछ चाहिए?

अध्याय 57, XLVII

1 हे मेरे पुत्र मेथोसलाम, अपने सब भाइयों और अपने सारे घराने को, और प्रजा के पुरनियोंको बुला ले, कि मैं अपनी योजना के अनुसार उन से बातें करके चला जाऊं।

2 और मेथोसलाम ने फुर्ती करके अपने भाइयों, रेगिम, रीमान, ऊचान, किर्मिओन, गदाद, और प्रजा के सब बज़ुर्गों को अपने पिता हनोक के साम्हने बुलवाया; और उसने उन्हें आशीर्वाद दिया, (और) उनसे कहा:

अध्याय 58, XLVIII

1 हे मेरे बच्चों, आज मेरी सुनो।

2 उन दिनों में जब भगवान ने आदम के निमित्त पृय्वी पर उतरकर उसकी सब सृष्‍टि की सुधि ली, जिन्हें उस ने आप ही सृजा, और इन सभोंके बाद उस ने आदम को उत्पन्न किया, और पृय्वी के सब पशुओं, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं को भगवान ने बुलाया।, और सब पक्षी जो आकाश में उड़ते हैं, और उन सब को हमारे पिता आदम के साम्हने ले आए।

3 और आदम ने पृय्वी पर रहनेवाली सब वस्तुओं के नाम रखे।

4 और भगवान ने उसको सब पर हाकिम ठहराया, और सब वस्तुओं को उसके वश में कर दिया, और उन्हें गूंगा और जड़ कर दिया, कि वे मनुष्य की आज्ञा पाएं, और उसके आधीन रहें, और उसकी आज्ञा मानें।

5 इस प्रकार भगवान ने हर मनुष्य को उसकी सारी संपत्ति पर प्रभुता करने के लिए भी बनाया।

6 भगवान मनुष्य के कारण किसी पशु का न्याय न करेगा, परन्तु मनुष्यों के प्राणोंका न्याय इस जगत में उनके पशुओंके बराबर करता है; क्यूंकि मनुष्यों के लिए एक विशेष स्थान है।

7 और जैसे मनुष्य की हर आत्मा गिनती के अनुसार होती है, वैसे ही जानवर भी नाश नहीं होंगे, और न ही जानवरों की सभी आत्माएं जिन्हें प्रभु ने बनाया, महान न्याय तक, और वे मनुष्य पर आरोप लगाएंगे, अगर वह उन्हें खराब खिलाता है।

अध्याय 59, LIX

1 जो कोई पशुओं के प्राण को अशुद्ध करता है, वह अपना प्राण भी अशुद्ध करता है।

2 क्योंकि मनुष्य पाप के लिये बलिदान करने के लिये शुद्ध पशुओं को लाता है, कि वह अपनी आत्मा का उपचार कर सके।

3 और यदि वे शुद्ध पशु, और पक्षी बलिदान करने को लाते हैं, तो मनुष्य चंगा हो जाता है, वह अपनी आत्मा का उपचार करता है।

4 सब कुछ तुम्हें भोजन के लिये दिया गया है, उसे चारों पांवों से बान्धो, अर्थात वह उसके आत्मा को अच्छा करता है।

5 परन्तु जो कोई बिना घाव किए पशु को मार डालता है, वह अपने प्राण को घात करता है, और अपने शरीर को अशुद्ध करता है।

6 और जो कोई छिपकर किसी पशु को किसी प्रकार की हानि पहुंचाता है, वह बुरा काम है, और वह अपने प्राण को अशुद्ध करता है।

अध्याय 60, LX

1 जो मनुष्य के प्राण को घात करता है, वह अपने ही प्राण को घात करता है, और अपने शरीर को भी घात करता है, और उसका सदा कोई इलाज नहीं।

2 जो किसी को फंदे में डालता है, वह आप ही उस में फंसता है, और उसका सदा तक कोई इलाज नहीं।

3 जो किसी मनुष्य को किसी पात्र में डालता है, उसका प्रतिशोध हमेशा के लिए महान न्याय से कम नहीं होगा।

4 जो टेढ़े काम करता या किसी प्राणी के विरूद्ध बुरी बातें कहता है, वह सर्वदा अपना न्याय न कर सकेगा।

अध्याय 61, LXI

1 और अब हे मेरे बच्चों, अपने मन को हर उस अन्याय से दूर रखो जिस से भगवान घृणा करता है। जैसे कोई मनुष्य अपने प्राण के लिये परमेश्वर से कुछ मांगता है , वैसे ही वह हर जीवित प्राणी के लिये भी कुछ मांगे, क्योंकि मैं सब कुछ जानता हूं, कि आने वाले महान समय में मनुष्यों के लिए बहुत सी विरासतें तैयार हैं, अच्छे के लिए अच्छा और बुरे के लिए बुरा, बिना किसी संख्या के।

2 धन्य हैं वे, जो भले घरों में प्रवेश करते हैं, क्योंकि बुरे घरों में न तो शान्ति मिलती है और न उन से लौटना होता है।

3 हे मेरे बच्चों, छोटे और बड़े, सुनो! जब मनुष्य अपने हृदय में अच्छा विचार रखता है, और अपने परिश्रम में से कुछ दान करके प्रभु के साम्हने लाता है, परन्तु उसके हाथ ने उन्हें नहीं बनाया है, तब प्रभु उसके हाथ के परिश्रम से मुंह मोड़ लेगा, और वह मनुष्य हाथों का श्रम नहीं पा सकेगा।

4 और यदि उसके हाथ ने उसे बनाया हो, परन्तु उसका दिल कुड़कुड़ाता रहे, और उसका कुड़कुड़ाना निरन्तर बन्द न होता हो, तो उसे कुछ लाभ नहीं।

अध्याय 62, LXII

1 धन्य वह मनुष्य है, जो धीरज धरकर अपने दान को विश्वास के साथ भगवान के साम्हने लाता है, क्योंकि उसे पापों की क्षमा मिलेगी।

2 परन्तु अगर वह समय से पहले अपने शब्द वापस ले लें, तो उसे पछताना नहीं; और यदि समय बीत जाए और वह अपनी इच्छा से वादा किया हुआ काम न करे, तो मृत्यु के बाद पश्चात्ताप नहीं होता।

3 क्योंकि जो जो काम मनुष्य समय से पहिले करता है, वह सब मनुष्यों की दृष्टि में धोखा, और परमेश्वर की दृष्टि में पाप है ।

अध्याय 63, LXIII

1 जब मनुष्य नंगे को वस्त्र पहिनाता, और भूखों का पेट भरता है, तो वह परमेश्वर की ओर से प्रतिफल पाएगा ।

2 परन्तु यदि उसका मन कुड़कुड़ाता है, तो वह दोहरी बुराई करता है; स्वयं का और जो वह देता है उसका विनाश; और उसके लिये कोई प्रतिफल न मिलेगा।

3 और यदि उसका मन अपने भोजन से, और अपके ही मांस से तृप्त हो, और अपके ही वस्त्र पहिने हुए हो, तो वह तुच्छ काम करेगा, और दरिद्रता में अपना सारा धीरज खो देगा, और अपने भले कामों का प्रतिफल न पाएगा।

4 हर एक गौरवान्वित और घमण्डी मनुष्य भगवान से बैर रखता है, और प्रत्येक मिथ्या भाषण, असत्य में लिपटा हुआ; वह मृत्यु की तलवार से काट डाला जाएगा, और आग में डाल दिया जाएगा, और सर्वदा जलता रहेगा।

अध्याय 64, LXIV

1 जब हनोक ने ये बातें अपके पुत्रोंसे कही, तब दूर और निकट सब लोगों ने सुना, कि भगवान हनोक को किस प्रकार बुला रहा है। उन्होंने एक साथ सलाह ली:

2 आओ, हम चलकर हनोक को चूमें, और दो हजार पुरूष इकट्ठे होकर हनोक और उसके पुत्रों समेत स्थान अखुज़ान (Achuzan) में आए, जहां हनोक रहता था।

3 और बज़ुर्ग, सारी मण्डली के लोग आए, और दण्डवत् करके हनोक को चूमकर उस से कहा,

4 हे हमारे पिता हनोक, तू भगवान की ओर से, जो सनातन हाकिम है, धन्य हो, और अब अपने पुत्रों और सारी प्रजा को भी आशीष दे, कि आज तेरे साम्हने हमारी महिमा हो।

5 क्योंकि भगवान के साम्हने सर्वदा तुम्हारी महिमा होती रहेगी, क्योंकि भगवान ने पृय्वी के सब मनुष्यों से बढ़कर तुम्हें चुन लिया, और अपनी सारी सृष्टि का, दृश्य (भौतिक) और अदृश्य (आध्यात्मिक) का लेखक ठहराया, और मनुष्य के पापों से छुटकारा दिलाया, और तेरे घराने का सहायक हुआ।

अध्याय 65, LXV

1 और हनोक ने अपनी सारी प्रजा को उत्तर दिया, हे मेरे बच्चों, सुनो, सब प्राणियों की सृष्टि से पहिले भगवान ने दृश्य (भौतिक) और अदृश्य (आध्यात्मिक) वस्तुओं की सृष्टि की।

2 और जब तक समय बीत गया, तब तक जान ले, कि उस ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, और उस में देखने के लिये आंखें, सुनने के लिये कान, मनन करने के लिये हृदय, और सोचने के लिये बुद्धि दी।

3 और भगवान ने मनुष्य के सब कामोंको देखा, और उसके सब प्राणियोंकी सृष्टि की, और समय बांट दिया, समय से वर्ष ठहराए, और वर्षोंसे महीने ठहराए, और महीनोंसे दिन ठहराए, और दिनोंमें से सात ठहराए।

4 और उन में उसने घंटे ठहराए, और उन्हें ठीक से मापा, ताकि मनुष्य समय पर विचार कर सके और वर्षों, महीनों और घंटों, (उनके) परिवर्तन, शुरुआत और अंत को गिन सके, और वह अपने जीवन को गिन सके, आरम्भ से लेकर मृत्यु तक, और उसके पापों पर विचार करना, और उसके कार्यों को बुरा और अच्छा लिखना; क्योंकि कोई भी काम भगवान से छिपा नहीं रहता, इसलिये कि हर एक मनुष्य अपना अपना काम जाने, और उसकी सब आज्ञाओं का उल्लंघन न करे, और पीढ़ी पीढ़ी तक मेरी लिखावट की रक्षा करता रहे।

5 जब सारी सृष्टि, दृश्य (भौतिक) और अदृश्य (आध्यात्मिक), जैसे प्रभु ने बनाई, समाप्त हो जाएगी, तब हर मनुष्य महान न्याय के लिए जाएगा, और तब सभी समय, और वर्ष नष्ट हो जाएंगे, और उसके बाद कोई महीना नहीं रहेगा। न ही दिन और न ही घंटे, उन्हें एक साथ रखा जाएगा और उनकी गिनती नहीं की जाएगी।

6 एक युग होगा, और सभी धर्मी जो प्रभु के महान न्याय से बच जाएंगे, महान युग में एकत्र किए जाएंगे, क्योंकि धर्मियों के लिए महान युग शुरू होगा, और वे अनंत काल तक जीवित रहेंगे, और तब भी होगा उनके बीच न परिश्रम, न बीमारी, न अपमान, न चिन्ता, न आवश्यकता, न क्रूरता, न रात, न अन्धकार, परन्तु महान प्रकाश।

7 और उनके पास एक महान अविनाशी दीवार, और एक उज्ज्वल और अविनाशी (अनन्त) स्वर्ग होगा, क्योंकि सब नाशवान (नश्वर) वस्तुएं मिट जाएंगी, और अनन्त जीवन होगा।

अध्याय 66, LXVI

1 और अब, हे मेरे बच्चों, अपने प्राणों को हर उस अन्याय से बचाए रखो, जिस से भगवान घृणा करता है।

2 उसके साम्हने डरते और कांपते हुए चलो, और एकान्त में उसी की सेवा करो।

3 सच्चे परमेश्वर को दण्डवत् करो, गूंगी मूरतों को नहीं, परन्तु उसके स्वरूप को दण्डवत करो, और सब न्यायोचित भेंट भगवान के साम्हने चढ़ाओ। ईश्वर अनुचित को नापसंद करते हैं ।

4 क्योंकि भगवान सब कुछ देखता है; जब मनुष्य अपने हृदय में विचार करता है, तब वह बुद्धि को समझाता है, और प्रत्येक विचार सदैव प्रभु के साम्हने रहता है , जिस ने पृय्वी को दृढ़ किया, और सब प्राणियोंको उस पर रखा।

5 यदि तू स्वर्ग की ओर दृष्टि करे, तो प्रभु वहीं है; यदि तुम समुद्र की गहराई और सारी धरती के नीचे का ध्यान करो, तो प्रभु वहीं है।

6 क्योंकि भगवान ने सब वस्तुएं सृजीं। सारी सृष्टि के प्रभु को छोड़कर मनुष्य की बनाई हुई वस्तुओं के आगे न झुकें, क्योंकि प्रभु के साम्हने कोई भी काम छिपा नहीं रह सकता ।

7 हे मेरे बच्चों, चलो, सहनशीलता में, नम्रता में, ईमानदारी में, उकसावे में, दुःख में, विश्वास में और सच्चाई में, प्रतिज्ञाओं में, बीमारी में, दुर्व्यवहार में, घावों में, प्रलोभन में, नग्नता में, वंचना में, एक-दूसरे से प्यार करते हुए, जब तक आप बुराइयों के इस युग से बाहर नहीं निकल जाते, कि आप अनंत समय के उत्तराधिकारी नहीं बन जाते।

8 धन्य हैं वे न्यायी जो महान न्याय से बच जाएंगे, क्योंकि वे सूर्य से सात गुना अधिक चमकेंगे, क्योंकि इस संसार में प्रकाश, अंधकार, भोजन, आनंद, दुःख, स्वर्ग, यातना, आग, पाला, और अन्य चीज़ें, सब से सातवां हिस्सा हटा दिया गया है। उस ने सब कुछ लिखकर रख दिया, कि तुम पढ़ो और समझो।

अध्याय 67, LXVII

1 जब हनोक लोगों से बातें कर चुका, तब भगवान ने पृय्वी पर अन्धियारा फैला दिया, और अन्धकार हो गया, और उस ने हनोक के साथ खड़े हुए मनुष्योंको ढक लिया, और वे हनोक को ऊंचे स्वर्ग पर, जहां भगवान है, उठा ले गए। ; और उस ने उसे ग्रहण करके अपने साम्हने रखा, और अन्धियारा पृय्वी पर से दूर हो गया, और उजियाला फिर आ गया।

2 और लोगों ने देखा, और न समझे, कि हनोक किस रीति से पकड़ा गया, और परमेश्वर की बड़ाई करने लगे, और एक रोल (roll) मिला, जिस में अदृश्य परमेश्वर का पता था; और सब अपने अपने निवास को चले गए।

अध्याय 68, LXVIII

1 हनोक सीवान (Tsivan) महीने के छठे दिन को उत्पन्न हुआ, और तीन सौ पैंसठ वर्ष जीवित रहा।

2 वह सीवान महीने के पहिले दिन को स्वर्ग पर उठा लिया गया, और साठ दिन तक स्वर्ग में रहा।

3 और उस ने सारी सृष्टी के सब चिन्ह, जिन्हें भगवान ने बनाया, लिखा, और तीन सौ छियासठ पुस्तकें लिखीं, और उन्हें अपने पुत्रों को सौंप दिया, और तीस दिन तक पृय्वी पर रहा, और छठे दिन फिर स्वर्ग पर उठा लिया गया। सीवान महीने का, उसी दिन और समय जब उसका जन्म हुआ था।

4 जैसे इस जीवन में हर मनुष्य का स्वभाव अंधकारपूर्ण है, वैसे ही उसका गर्भाधान, जन्म और इस जीवन से प्रस्थान भी अंधकारपूर्ण है।

5 जिस समय उसका गर्भाधान हुआ, उसी घड़ी उसका जन्म हुआ, और उसी घड़ी उसकी मृत्यु भी हो गई ।

6 मेथोसलाम और उसके भाइ, हनोक के सब पुत्रों ने, फुर्ती की, और अचुज़ान नामक उस स्थान में, जहां से और जहां से हनोक स्वर्ग पर उठाया गया था, एक वेदी बनाई।

7 और उन्होंने बैलों को लेकर सब लोगों को बुलाया, और भगवान के साम्हने बलि चढ़ाया।

8 और सब लोग, और बज़ुर्ग, और सारी मण्डली के लोग पर्व में आए, और हनोक के पुत्रोंके लिथे भेंट ले आए ।

9 और उन्होंने परमेश्वर की स्तुति करते हुए, आनन्द और आनन्द करते हुए तीन दिन तक बड़ी जेवनार की, जिस ने हनोक के द्वारा उन्हें ऐसा चिन्ह दिया, कि उस ने उस पर अनुग्रह किया, और वे उसे पीढ़ी से पीढ़ी तक अपने बेटों को सौंपते रहें युगों से युगों तक।

10 आमीन.


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