Radha Swami Shiv Dayal Ji used to smoke hookah (Tobacco Pipe)
Radha Soami books reveal that Hazoor Swami Shiv Dayal ji Maharaj used to smoke hukkah everyday
The founder of Radha Soami sect used to smoke tobacco.
According to Holy Scriptures especially those related to Hinduism and Sikhism one who smokes can never achieve God.
It is morally and religiously wrong.
Why Sikhs do not smoke? There is a concrete reason behind it. Smoking is one of the biggest hindrance in achieving God.
Radha Soami disciples portray Shiv Dayal ji Maharaj as “Puran Dhani” in other words “God” but this is untrue as smoking tobacco is completely contrary to the constitution of God. One who smokes tobacco cannot achieve God, let alone be God himself.
Shiv Dayal Ji used to smoke hukka. Book - "Jeevan Charitr Swami Ji Maharaj"
Kabir Sahib's Bani (speech) on consuming intoxicants like tobacco and alcohol
अमल आहारी आत्मा, कदे ना उतरे पार ।
Sahib Kabir says that those who consume intoxicants can never achieve salvation.
हरिजन को सोहै नहीं, हुक्का हाथ के माहि ।
कहें कबीर रामजन, हुक्का पीवें नाहिं ॥
हरि-भक्तों के हाथ में हुक्का शोभा नहीं देता। कबीर साहिब जी कहते हैं कि राम-भक्त हुक्का नहीं पीते।
Kabir Sahib says that those people who worship God or those who want to achieve God do not smoke hukkah (tobacco pipe).
भांग तमाखू छूतरा, जन कबीर से खाहिं ।
जोग मन जप तप किये, सबे रसातल जाहि ॥
भांग तम्बाकू का जो व्यक्ति सेवन करते हैं, योग यज्ञ, जप, तप ये भले करें, वे अंत में रसातल (नरक - hell) में जाते हैं।
Kabir Sahib says that those people who consume intoxicants like cannabis, tobacco etc. are destined to hell irrespective of whether they do yog, recitation of God's name, meditation or not.
सुरापान मद्य मांसाहारी, गमन करै भोगैं पर नारी।
सतर जन्म कटत हैं शीशं, साक्षी साहिब है जगदीशं।।
पर द्वारा स्त्री का खोलै, सतर जन्म अंधा होवै डोलै।
मदिरा पीवै कड़वा पानी, सत्तर जन्म श्वान के जानी।।
Satguru Garib Das ji's Bani on tobacco and alcohol consumption
गरीब, हुक्का हरदम पिवते, लाल मिलावैं धूर। इसमें संशय है नहीं, जन्म पिछले सूर।।1।।
गरीब, सो नारी जारी करै, सुरा पान सौ बार। एक चिलम हुक्का भरै, डुबै काली धार।।2।।
गरीब, सूर गऊ कुं खात है, भक्ति बिहुनें राड। भांग तम्बाखू खा गए, सो चाबत हैं हाड।।3।।
गरीब, भांग तम्बाखू पीव हीं, सुरा पान सैं हेत। गौस्त मट्टी खाय कर, जंगली बनें प्रेत।।4।।
गरीब, पान तम्बाखू चाब हीं, नास नाक में देत। सो तो इरानै गए, ज्यूं भड़भूजे का रेत।।5।।
गरीब, भांग तम्बाखु पीव हीं, गोस्त गला कबाब। मोर मृग कूं भखत हैं, देंगे कहाँ जवाब। ।।6।।