Atharva Veda Mantras
Atharva Veda Kand 4 Anuvaak 1 Mantra 3
अथर्ववेद काण्ड:4 सूक्त:1 मन्त्र 3
प्र । य: । जज्ञे । विद्वान् । अस्य । बन्धु: । विश्वा । देवानाम् । जनिम । विवक्ति । ब्रह्म । ब्रह्मण: । उत् । जभार । मध्यात् । नीचै: । उच्चै: ।स्वधा । अभि । प्र । तस्थौ ॥
Wrong Translation by Arya Samaj Swami
(यः विद्वान्) जो विद्वान् परमेश्वर (अस्य) इस [जगत्] का (बन्धुः) बन्धन वा नियम करनेवाला, अथवा, बन्धु हितकारी (प्र) अच्छे प्रकार (जज्ञे) प्रकट हुआ था, और जो (देवानाम्) भूमि, सूर्य आदि दिव्य पदार्थों वा महात्माओं के (विश्वा=विश्वानि) सब (जनिमा) जन्मों को (विवक्ति) बतलाता है। उसने (ब्रह्मणः) ब्रह्म [अपने परब्रह्म स्वरूप] के (मध्यात्) मध्य से (ब्रह्म) वेद को (उज्जहार) उभारा था, वही (नीचैः) नीचे और (उच्चैः) ऊँचे (स्वधाः) अनेक अमृतों वा अन्नों को (अभि=अभिलक्ष्य) सन्मुख करके (प्र) उत्तमता से (तस्थौ) स्थित हुआ था ॥३॥
The key words are ब्रह्म ब्रह्मण उज्जभार - the meaning of this is that God Brahm originated from Brahman (bigger god i.e. Supreme God)
Atharva Veda Kand 4 Anuvaak 1 Mantra 7
- God Kabir has done all the creation. He has created the universe
- God Kabir does not deceive like Kaal
अथर्ववेद काण्ड 4 सूक्त 1 मन्त्र 7
य: । अथर्वाणम् । पितरम् । देवऽबन्धुम् । बृहस्पतिम् । नमसा । अव । च । गच्छात् । त्वम् । विश्वेषाम् । जनिता । यथा । अस: । कवि: । देव: । न । दभायत् । स्वधाऽवान् ॥
Translation by Arya Samaj Swami
- (यः) गतिवाला, पुरुषार्थी पुरुष (अथर्वाणम्) निश्चल, (पितरम्) पिता, (देवबन्धुम्) विद्वानों वा सूर्यादि दिव्य लोकों का बन्धु वा नियामक, (बृहस्पतिम्) बड़े बड़ों के स्वामी परमेश्वर को (नमसा) नमस्कार के साथ (च) निश्चय करके (अव गच्छात्) पहिचाने। [हे परमेश्वर !] (त्वम्) तू (विश्वेषाम्) सब [सुखों] का (जनिता) उत्पादक (असः) हो, (यथा) क्योंकि (कविः) मेधावी, (स्वधावान्) अन्नवान् वा स्वयं धारण सामर्थ्यवाला (देवः) परमेश्वर (न) कभी नहीं (दभायत्) ठगता है ॥७॥
Correct Translation by Sant Rampal Ji
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