Rig Veda Mandal 10
Various mantras in Rig Veda Mandal 10 gives detailed information about the fact that God can cure any illness. The Rig Veda Mantras explicitly say that God can even bring a person back from the death God. At various places Rig Veda says that God can treat any type of body ailment involving various body parts such as head, neck, liver, kidneys etc.
Rig Veda therefore proves that God has the ability to provide any type of relief to his devotees by treating various illnesses.
The key point here is that how can one derive these benefits provided by God. About this, God has said that one needs to find a Tatvadarshi Sant (Yajurveda Adhyay 40, Gita 4.34) who will provide the supreme instruction in worship of Supreme God thus making one eligible for salvation (moksha) and also curing body ailments. Without finding a true saint and without doing true worship, these benefits cannot be attained.
Please read Rig Veda Mantras below
Rig Veda Mandal 10 Sukt 161 Mantra 2
- God can cure any ilness and increase age to 100 years
- God can even resurrect the dead
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मन्त्र 2
यदि॑ । क्षि॒तऽआ॑युः । यदि॑ । वा॒ । परा॑ऽइतः । यदि॑ । मृ॒त्योः । अ॒न्ति॒कम् । निऽइ॑तः । ए॒व । तम् । आ । ह॒रा॒मि॒ । निःऽऋ॑तेः । उ॒पऽस्था॑त् । अस्पा॑र्षम् । ए॒न॒म् । श॒तऽशा॑रदाय ॥
Translation by Dayanand Saraswati
- (यदि क्षितायुः) यदि रोगाक्रान्त क्षीण आयु हो गया (यदि वा परेतः) यदि वर्त्तमान अवस्था से परे चला गया है, अधिक रोगी हो गया है (अन्तिकं नीतः-एव) यदि मृत्यु के समीप रोग ने पहुँचा दिया-मरणासन्न कर दिया (तं निर्ऋतेः) उस घोर आपत्ति के (उपस्थात्-आ हरामि) उत्सङ्ग से ले आता हूँ (एनं शतशारदाय) इसे सौ शरद् काल के लिए, सौ वर्ष-पर्यन्त जीवन के लिए (आस्पार्षम्) बलवान् करता हूँ ॥२॥
Correct Translation by Sant Rampal Ji
Rig Veda Mandal 10 Sukt 161 Mantra 5
- God takes care of eyes and other body parts of his devotees who do true worship of God Kavir
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मन्त्र 5
आ । अ॒हा॒र्ष॒म् । त्वा॒ । अवि॑दम् । त्वा॒ । पुनः॑ । आ । अ॒गाः॒ । पु॒नः॒ऽन॒व॒ । सर्व॑ऽअङ्ग । सर्व॑म् । ते॒ । चक्षुः॑ । सर्व॑म् । आयुः॑ । च॒ । ते॒ । अ॒वि॒द॒म् ॥
Very poor Translation by Arya Samaji swamis
- (त्वा-आहार्षम्) हे रोगी ! तुझे रोग से छुड़ा लाया हूँ (त्वा-अविदम्) तुझे स्वास्थ्य के लिये प्राप्त कर लिया है (पुनः आगाः) फिर जीवन को प्राप्त कर (पुनर्नव सर्वाङ्ग) पुनर्नव जीवनवाले सर्वाङ्गोंवाले ! (ते चक्षुः सर्वम्) तेरी आँख सब ठीक है (च) और (सर्वम्-आयुः-ते अविदम्) तेरी सब-पूर्ण आयु प्राप्त कर लिया है युक्त चिकित्सक ने ॥५॥
Correct Translation by Sant Rampal Ji
Rig Veda Mandal 10 Sukt 162 Mantra 5
- God can set right a problematic husband/wife etc.
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 162 मन्त्र 5
यः । त्वा॒ । भ्राता॑ । पतिः॑ । भू॒त्वा । जा॒रः । भू॒त्वा । नि॒ऽपद्य॑ते । प्र॒ऽजाम् । यः । ते॒ । जिघां॑सति । तम् । इ॒तः । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥
Very poor Translation by Arya Samaji swamis
- (यः) जो अमीवा रोगकृमि (भ्राता-पतिः-भूत्वा) भ्राता-भ्राता जैसा जन्म से या पति जैसा पति के जन्मकाल से प्राप्त हुआ (जारः-भूत्वा) कौमार्य अवस्था को जीर्ण करनेवाला (त्वा निपद्यते) तुझे प्राप्त होता है, तेरे अन्दर बैठ जाता है (ते प्रजां जिघांसति) तेरी सन्तति को नष्ट करता है (तम्-इतः-नाशयामसि) उसे इस स्थान से नष्ट करते हैं ॥५॥
Correct Translation by Sant Rampal Ji
Rig Veda Mandal 10 Sukt 163 Mantra 1
- God cures problems related to eyes, ears, nose, mouth, tongue and other type of problems.
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 163 मन्त्र 1
अ॒क्षीभ्या॑म् । ते॒ । नासि॑काभ्याम् । कर्णा॑भ्याम् । छुबु॑कात् । अधि॑ । यक्ष्म॑म् । शी॒र्ष॒ण्य॑म् । म॒स्तिष्का॑त् । जि॒ह्वायाः॑ । वि । वृ॒हा॒मि॒ । ते॒ ॥
Translation by Arya Samaji swamis
- (ते) हे रोगी ! तेरे (अक्षीभ्याम्) दोनों आखों से (नासिकाभ्याम्) नासिका के दोनों छिद्रों से (कर्णाभ्याम्) दोनों कानों से (छुबुकात्-अधि) मुख से (मस्तिष्कात्) मस्तिष्क के अन्दर से (जिह्वायाः) जिह्वा के अन्दर से (ते) तेरे (शीर्षण्यम्) शिर में होनेवाले (यक्ष्मम्) रोग को (विवृहामि) दूर करता हूँ ॥१॥
Correct Translation by Sant Rampal Ji
Rig Veda Mandal 10 Sukt 163 Mantra 2
- God cures problems related to neck, head, throat, shoulders, blood vessels etc.
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 163 मन्त्र 2
ग्री॒वाभ्यः॑ । ते॒ । उ॒ष्णिहा॑भ्यः । कीक॑साभ्यः । अ॒नू॒क्या॑त् । यक्ष्म॑म् । दो॒ष॒ण्य॑म् । अंसा॑भ्याम् । बा॒हुऽभ्याम् । वि । वृ॒हा॒मि॒ । ते॒ ॥
Translation by Arya Samaji swamis
- (ते) हे रोगी ! तेरे (ग्रीवाभ्यः) ग्रीवा-गर्दन की नाड़ियों से (उष्णिहाभ्यः) कण्ठस्थ नाड़ियों से (कीकसाभ्यः) कण्ठ की हड्डियों से (अनूक्यात्) मेरुदण्ड सन्धिसंस्थान से (अंसाभ्याम्) कन्धों से (बाहुभ्याम्) भुजाओं से (ते) तेरे (दोषण्यं यक्ष्मम्) भुजाओं की नाड़ियों में होनेवाले रोग को (वि वृहामि) पृथक् करता हूँ ॥२॥
Correct Translation by Sant Rampal Ji
Rig Veda Mandal 10 Sukt 163 Mantra 3
- God cures problems related to intestines, heart, kidneys, liver etc.
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 163 मन्त्र 3
आ॒न्त्रेभ्यः॑ । ते॒ । गुदा॑भ्यः । व॒नि॒ष्ठोः । हृद॑यात् । अधि॑ । यक्ष्म॑म् । मत॑स्नाभ्याम् । य॒क्नः । प्ला॒शिऽभ्यः॑ । वि । वृ॒हा॒मि॒ । ते॒ ॥
Translation by Arya Samaji swamis
- (ते) तेरे (आन्त्रेभ्यः) आँतों से (गुदाभ्यः) मलस्थानों से (वनिष्ठोः) स्थूल आँत से (हृदयात्-अधि) हृदय के अन्दर से (मतस्नाभ्याम्) दोनों गुर्दों से (यक्नः) यकृत् से-जिगर से (प्लाशिभ्यः) प्लीह स्थानों से-तिल्ली के भागों से (यक्ष्मं वि वृहामि) रोग को पृथक् करता हूँ ॥३॥
Correct Translation by Sant Rampal Ji
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Rig Veda Mandal 10 Sukt 90
Categories: vedas | Tags: