Yajurveda Adhyay 8 Mantra 13
Yajurveda Adhyay 8 Mantra 13
- God forgives sins
यजुर्वेद अध्याय 8 मन्त्र 13
देवकृतस्यैनसो अवयजनमसि मनुष्यकृतस्यैनसो अवयजनमसि पितृकृतस्यैनसो अवयजनमसि आत्मकृतस्यैनसो अवयजनमसि एनस एनसो अवयजनमसि यच्चाहमेनो विद्वांश्चकार यच्चाविद्वांस्तस्य सर्वस्यैनसो अवयजनमसि
Poor Translation by Dayanand Saraswati
हे सब के उपकार करनेवाले मित्र ! आप (देवकृतस्य) दान देनेवाले के (एनसः) अपराध के (अवयजनम्) विनाश करनेवाले (असि) हो, (मनुष्यकृतस्य) साधारण मनुष्यों के किये हुए (एनसः) अपराध के (अवयजनम्) विनाश करनेवाले (असि) हो, (पितृकृतस्य) पिता के किये हुए (एनसः) विरोध आचरण के (अवयजनम्) अच्छे प्रकार हरनेवाले (असि) हो, (आत्मकृतस्य) अपने किये हुए (एनसः) पाप के (अवयजनम्) दूर करनेवाले (असि) हो, (एनसः) (एनसः) अधर्म्म-अधर्म्म के (अवयजनम्) नाश करनेहारे (असि) हो, (विद्वान्) जानता हुआ मैं (यत्) जो (च) कुछ भी (एनः) अधर्म्माचरण (चकार) किया, करता हूँ वा करूँ (अविद्वान्) अनजान मैं (यत्) जो (च) कुछ भी किया, करता हूँ वा करूँ (तस्य) उस (सर्वस्य) सब (एनसः) दुष्ट आचरण के (अवयजनम्) दूर करनेवाले आप (असि) हैं ॥१३॥
Correct Translation by Sant Rampal Ji
Yajurveda Adhyay 7 Mantra 39 Yajurveda Adhyay 29 Mantra 25
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